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________________ वैमानिक देवलोक में जाते हैं। वैक्रिय शरीरी नारक और देव-सम्यक्त्व प्राप्ति के बाद केवल मनुष्य गति का ही बंध करते हैं। सम्यक्त्व प्राप्ति के पूर्व यदि आयुष्य का बंध हो जाए तो औदारिक शरीरी चारों गतियों में जा सकते हैं। वैक्रिय शरीरी केवल मनुष्य और तिर्यंचगति में जाते हैं। 682. क्या सम्यक्त्व और चारित्र साथ-साथ रहते हैं? उ. सम्यक्त्व शून्य चारित्र नहीं होता। दर्शन में चारित्र की भजना है। सम्यक्त्व और चारित्र युगपत् उत्पन्न होते हैं और जहाँ वे युगपत् उत्पन्न नहीं होते वहां सम्यक्त्व पहले होता है। 683. सम्यक्त्वी में चारित्र कितने होते हैं? उ. औपशमिक सम्यक्त्वी में-4 परिहारविशुद्धि चारित्र को छोड़कर। सास्वादन सम्यक्त्वी में-चारित्र नहीं। क्षायोपशमिक सम्यक्त्वी में-3 (प्रथम तीन) वेदक सम्यक्त्वी में-3, क्षायोपशमिकवत्। क्षायिक सम्यक्त्वी में 5 (सभी)। 684. सम्यक्त्व का क्या महत्त्व है? उ. जो जीव सम्यक्त्वी नहीं है उसे ज्ञान नहीं होता, ज्ञान के बिना चारित्रगुण नहीं होता, चारित्र के अभाव में कर्ममुक्त नहीं होता और अमुक्त का निर्वाण नहीं होता। 685. सम्यक्त्व और चारित्र में मुख्यता किसकी होनी चाहिए? आवश्यक नियुक्ति में कहा गया—श्रेणिक न बहुश्रुत था, न प्रज्ञप्तिधर था और न ही वाचक। फिर भी वह आगामी काल में तीर्थंकर होगा। प्रज्ञा से समीक्षा करने पर दर्शन ही प्रधान है। चारित्र से भ्रष्ट होने पर भी दर्शन (सम्यक्त्व) को दृढ़ रखना चाहिए। क्योंकि चारित्र से रहित व्यक्ति भी सिद्ध हो सकता है। दर्शन से रहित सिद्ध नहीं हो सकता। (यह आपेक्षिक कथन है। निश्चय में तो दर्शन, ज्ञान व चारित्र की त्रिपदी ही मुक्ति का मार्ग है।) 1. आवश्यक नियुक्ति-1158/1159 H ARE कर्म-दर्शन 151
SR No.032424
Book TitleKarm Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanchan Kumari
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2014
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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