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________________ 2. सास्वादन सम्यक्त्व-जघन्य-एक समय, उत्कृष्ट-छह आवलिका। 3. क्षायोपशमिक सम्यक्त्व-जघन्य-एक समय, उत्कृष्ट साधिक 66 सागर। 4. वेदक सम्यक्त्व-जघन्य-उत्कृष्ट-एक समय। 5. क्षायिक सम्यक्त्व-सादि अनन्त। 658. क्षपक श्रेणी किसे कहते हैं? उ. मोक्ष की ओर गतिमान जीवों के मोह कर्म को सम्पूर्ण रूप से क्षय करने की प्रक्रिया' को क्षपक श्रेणी कहते हैं। 1. क्षपक श्रेणी में कर्म प्रकृतियों के क्षय का क्रम इस प्रकार हैं * अनन्तानुबंधी कषाय-चतुष्क। * मिथ्यात्व-मिश्र-सम्यक्त्व मोह। * अप्रत्याख्यान-प्रत्याख्यान कषाय अष्टक का युगपत् क्षय प्रारम्भ-क्षयकाल के मध्यम भाग में सोलह अन्य प्रकृतियों का क्षय1. नरकगति नाम 2. नरकानुपूर्वी नाम 3. तिर्यंचगति नाम 4. तिर्यंचानुपूर्वी नाम 5. एकेन्द्रिय जाति नाम 6. द्वीन्द्रिय जाति नाम 7. त्रीन्द्रिय जाति नाम 8. चतुरिन्द्रिय जाति नाम 9. आतप नाम 10. उद्योत नाम 11. स्थावर नाम 12. सूक्ष्म नाम 13. साधारण नाम 14. निद्रानिद्रा 15. प्रचला-प्रचला 16. स्त्यानर्द्धि * अवशिष्ट अप्रत्याख्यान-प्रत्याख्यान कषाय अष्टक। * नपुंसक वेद * स्त्री वेद * हास्य षट्क (हास्य, रति, अरति, भय, शोक, जुगुप्सा), पुरुषवेद। * क्रमशः संज्वलन क्रोध, मान, माया, लोभ। जीव छद्मस्थकाल (क्षीण मोह गुणस्थान) के दो समय शेष रहने पर निद्रा आदि प्रकृतियों का क्षय करता है। । प्रथम समय में क्षय होने वाली प्रकृतियां। * निद्रा * प्रचला * देवगति नाम * देवानुपूर्वी नाम * वैक्रिय नाम * संहनन (वज्रऋषभनाराच को छोड़कर)। * संस्थान नाम * तीर्थंकर नाम * आहारक नाम। । दूसरे समय में (छद्मस्थकाल के अन्तिम समय में) क्षीण होने वाली प्रकृतियां * ज्ञानावरण चतुष्क * दर्शनावरण चतुष्क * अन्तराय पंचक इन सब प्रकृतियों के क्षीण होने पर केवलज्ञान की प्राप्ति होती है। PH कर्म-दर्शन 147
SR No.032424
Book TitleKarm Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanchan Kumari
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2014
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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