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________________ 638. सम्यक्त्व मोहनीय कर्म किसे कहते हैं? उ. जो कर्म औपशमिक अथवा क्षायिक सम्यक्त्व ( निर्मल अथवा स्थिर सम्यक्त्व) उत्पन्न होने में बाधक है, उसे सम्यक्त्व मोहनीय कर्म कहते हैं। प्रज्ञापना में सम्यक्त्व मोहनीय आदि को सम्यक्त्व वेदनीय आदि कहा है। 639. सम्यक्त्व मोहनीय कर्म की स्थिति कितनी है ? उ. जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट 66 सागर से कुछ अधिक । 640. सम्यक्त्व मोहनीय कर्म के क्षयोपशम से जीव को क्या प्राप्त होता है ? उ. सम्यक्त्व मोहनीय कर्म के क्षयोपशम से शुद्ध सम्यक्त्व प्रकट होता है और जीव नौ तत्त्वों की शुद्ध श्रद्धा करने लगता है। 641. सम्यग् दर्शन किसे कहते हैं? उ. जिसमें जीव- अजीव आदि तत्त्व सही रूप में दृष्टिगत होते हैं, वह सम्यग्दर्शन है। इसका ही दूसरा नाम सम्यक्त्व, सम्यकदृष्टि है। 642. तत्त्व किसे कहते हैं और उसके कितने प्रकार हैं? उ. तत्त्व का अर्थ है— पदार्थ, पारमार्थिक वस्तु या सत्त्व । तत्त्व नौ हैं1. जीव — जिसमें चेतना हो, सुख-दुःख का संवेदन हो । 2. अजीव – जिसमें चेतना न हो। 3. पुण्य – शुभ रूप से उदय आने वाले कर्म - पुद्गल । 4. पाप - अशुभ रूप में उदय आने वाले कर्म - पुद्गल । 5. आश्रव - कर्म पुद्गलों को ग्रहण करने वाली आत्मप्रवृत्ति । 6. संवर—कर्म पुद्गलों के आगमन को रोकने वाली आत्मप्रवृत्ति । 7. निर्जरा — तपस्या आदि के द्वारा कर्म विलय से होने वाली आत्मा की आंशिक उज्ज्वलता । 8. बंध — आत्मा के साथ शुभ-अशुभ कर्मों का संबंध । 9. मोक्ष - अपने आत्म-स्वरूप में प्रतिष्ठित कर्मयुक्त आत्मा । 643. सम्यक्त्व की उत्पत्ति का कारण क्या है ? उ. 1. दर्शनमोहनीय कर्म का क्षय, क्षयोपशम और उपशम । मान, 2. चारित्र मोहनीय की प्रथम चार - अनन्तानुबंधी चतुष्क- (क्रोध, माया, लोभ), दर्शन मोहनीय की तीन- सम्यक्त्व, मिथ्यात्व और मिश्र - इन सात प्रकृतियों के क्षय, क्षयोपशम या उपशम से सम्यक्त्व प्राप्त होती है। 144 कर्म - दर्शन
SR No.032424
Book TitleKarm Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanchan Kumari
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2014
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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