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________________ मोहनीय कर्म 631. मोहनीय कर्म किसे कहते हैं? उ. जो कर्म मूढता उत्पन्न करे उसे मोहनीय कर्म कहते हैं अथवा चेतना को विकृत या मूर्च्छित करने वाला कर्म मोहनीय कर्म है। 632. मोहनीय कर्म कितने प्रकार का है ? उ. मोहनीय कर्म दो प्रकार का है— दर्शन मोहनीय और चारित्र मोहनीय | 633. दर्शन किसे कहते है ? उ. दर्शन का अर्थ है श्रद्धा, तत्त्वनिष्ठा, सम्यक्दृष्टि अथवा सम्यक्त्व | 634. दर्शन मोहनीय कर्म किसे कहते हैं ? उ. जो कर्म सम्यक्दृष्टि उत्पन्न न होने दे, तत्त्व - अतत्त्व का भेद ज्ञान न होने दे, उसे दर्शन मोहनीय कर्म कहते हैं। 635. दर्शन मोहनीय कर्म का स्वरूप क्या हैं? उ. मनुष्य को भ्रमजाल में डाले रखना, शुभ दृष्टि उत्पन्न न होने देना। 636. किन-किन का अवर्णवाद करता हुआ जीव दर्शनमोहनीय कर्म का बंध करता है ? उ. अवर्णवाद का अर्थ है— 'असद्भूतदोषोद्भावनम्' – जो दोष नहीं है उसका उद्भावन यानी कथन करना। ठाणं सूत्र में कहा गया है कि जीव पांच स्थानों से दुर्लभबोधिकत्व का अर्जन करता है 1. अर्हन्तों का अवर्णवाद करता हुआ । 2. अर्हत् प्रज्ञप्त धर्म का अवर्णवाद करता हुआ । 3. आचार्य - उपाध्याय का अवर्णवाद करता हुआ । 4. चतुर्वर्ण संघ का अवर्णवाद करता हुआ। 5. तप और ब्रह्मचर्य के विपाक से दिव्यगति को प्राप्त देवों का अवर्णवाद करता हुआ । उपरोक्त सभी का अवर्णवाद दर्शन मोहनीय कर्म बंध का हेतु हैं। 637. दर्शन मोहनीय कर्म कितने प्रकार का है ? उ. तीन प्रकार का - (1) सम्यक्त्व मोहनीय, (2) मिथ्यात्व मोहनीय और (3) मिश्र मोहनीय | 1. कथा सं. 25 कर्म-दर्शन 143
SR No.032424
Book TitleKarm Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanchan Kumari
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2014
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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