SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 139
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (5) दंशमशक, (6) चर्या, (7) शय्या, (8) वध, ( 9 ) रोग, (10) तृण-स्पर्श, (11) जल्ल। 620. केवली के कितने परीषह होते हैं ? उ. वेदनीय कर्म के उदय से होने वाले ग्यारह परीषह । 621. वेदनीय कर्म की स्थिति कितनी है ? उ. सातवेदनीय कर्म के दो भेद हैं— ईर्यापथिक और साम्परायिक । (1) ईर्यापथिक की स्थिति — जघन्य - उत्कृष्ट दो समय । (2) साम्परायिक की स्थिति — जघन्य 12 मुहूर्त, उत्कृष्ट 15 करोड़ करोड़ सागर | 622. असातावेदनीय कर्म की स्थिति कितनी ? उ. जघन्य एक सागर के 3/7 भाग में पल्योपम का असंख्यातवां भाग कम, उत्कृष्ट 30 करोड़ करोड़ सागर । 623. वेदनीय कर्म का अबाधाकाल कितना ? उ. सातवेदनीय — जघन्य अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्ट पन्द्रह सौ वर्ष । असातावेदनीय – जघन्य अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्ट तीन हजार वर्ष । 624. वेदनीय कर्म का लक्षण एवं कार्य क्या है ? उ. वेदनीय कर्म मधुलिप्त तलवार की धार के समान है। मधु के आस्वादन की तरह सातवेदनीय कर्म और जीभ कट जाने की तरह असातावेदनीय कर्म है। 625. वेदनीय कर्म भोगने के कितने हेतु हैं ? उ. वेदनीय कर्म भोगने के सोलह हेतु हैं— सातवेदनीय कर्म के उदय से जीव सुख की अनुभूति करता है उसके अनुभाव आठ हैं 1. मनोज्ञ शब्द 4. मनोज्ञ रस 7. वचन सुखता 626. असातवेदनीय कर्म के उदय अनुभाव कितने हैं? उ. उसके अनुभाव आठ हैं 1. अमनोज्ञ शब्द 3. अमनोज्ञ गंध 138 कर्म-दर्शन 3. 6. 2. मनोज्ञ रूप 5. मनोज्ञ स्पर्श 8. काय सुखता । से जीव दुःख की अनुभूति करता है, उसके मनोज्ञ गंध मन सुखता 2. अमनोज्ञ रूप 4. अमनोज्ञ रस
SR No.032424
Book TitleKarm Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanchan Kumari
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2014
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy