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________________ 4. कर्म-अनुभाव—सात वेदनीय आदि शुभ कर्मों के उदय से वह सुख का अनुभव करता है। जैसे-तीर्थंकरों के जन्म, दीक्षा, कैवल्य प्राप्ति और निर्वाण के अवसर पर उनके प्रभाव से नरक में भी आलोक होता है, तब नैरयिकों को भी शुभ कर्मोदय के योग से सुख होता है। इस प्रकार के सुख के अनुभव तीसरी नरक तक ही हो सकता है। 612. क्या देवता रोग-ग्रस्त होते हैं? उ. वैक्रिय शरीरधारी होने से देवताओं के शारीरिक रोग नहीं होते। मानसिक रोग हो सकते हैं। नो ग्रैवेयक और पांच अनुत्तरवासी देवों के मानसिक रोग भी नहीं होते। 613. चारों गतियों में साता-असातावेदनीय कर्म की अल्पता और बहुलता बताएं? उ. सर्वाधिक साता का उदय देवों को, उससे कम मनुष्यों को होती है। मनुष्यों से कम तिर्यंचों को और सबसे कम नारकी जीवों को सातावेदनीय का उदय होता है। नारकी जीवों को सबसे अधिक असाता का उदय होता है। नारकी से कम तिर्यञ्चों को, तिर्यंचों से कम मनुष्यों को और सबसे कम असाता का उदय होता है देवों को। 614. सातावेदनीय का जघन्य बंध किन जीवों के होता है? । उ. 11वें, 12वें तथा 13वें गुणस्थानवर्ती वीतरागी जीवों के सातावेदनीय का दो समय की स्थिति का जघन्य बंध होता है। 615. असातावेदनीय कर्म का जघन्य बंध किन जीवों के होता है? उ. असातावेदनीय कर्म का जघन्य बंध बादर एकेन्द्रिय पर्याप्ता जीव करते हैं। 616. ईर्यापथिकी बंध किसके होता है? उ. अकषायीं और वीतरागी के होने वाला बंध ईयापथिकी बंध कहलाता है। 617. साम्परायिक बंध किसके होता है? उ. सकषायी और सराग के होने वाला बंध साम्परायिक बंध कहलाता है। 618. सात-असातवेदनीय मुण्य का उदय है या पाप का? उ. सातवेदनीय पुण्य का उदय तथा असातवेदनीय पाप का उदय है। 619. बाईस परीषह में से कितने परीषह वेदनीय कर्म के उदय से होते हैं? उ. ग्यारह—(1) क्षुधा, (2) पिपासा, (3) शीत, (4) उष्ण, anam कर्म-दर्शन 137
SR No.032424
Book TitleKarm Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanchan Kumari
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2014
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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