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________________ 593. दर्शनावरणीय कर्म का उदय और क्षयोपशम कौनसे गुणस्थान तक रहता उ. पहले से बारहवें गुणस्थान तक। 594. दर्शनावरणीय कर्म की क्षायिक अवस्था कौनसे गुणस्थान में रहती है? ___उ. 13वें, चौदहवें गुणस्थान में तथा सिद्धों में। 595. दर्शनावरणीय कर्म का उपशम होता है या नहीं? उ. नहीं। 596. दर्शनावरणीय कर्म के क्षय और क्षयोपशम से क्या प्राप्त होता है? उ. दर्शनावरणीय कर्म के सम्पूर्ण क्षय से केवलदर्शन की प्राप्ति होती है, जिससे जीव की अन्तर्दर्शन की शक्ति प्रकट होती है। जब क्षय न होकर केवल क्षयोपशम होता है तब चक्षु, अचक्षु और अवधि ये तीन दर्शन प्रकट होते 597. क्षयोपशम के 32 बोलों में दर्शनावरणीय कर्म के क्षयोपशम के कितने बोल उ. आठ-पांच इन्द्रियां, चक्षुदर्शन, अचक्षुदर्शन और अवधिदर्शन। 598. दर्शनावरणीय कर्म की 9 उत्तर प्रकृतियों में सर्वघातिनी एवं देशघातिनी कितनी प्रकृतियां हैं? उ. केवलदर्शनावरण तथा पांचों निद्राएं सर्वघातिनी प्रकृतियां हैं तथा बाकी तीनों का देशघातिनी प्रकृतियों में समावेश होता है। 599. चारों गति के जीवों में कितने व कौन-कौनसे दर्शन पाते हैं? उ. सात नारकी, सर्व देवता, संज्ञी तिर्यंच पंचेन्द्रिय में प्रथम तीन दर्शन पाते हैं। * गर्भज मनुष्य में दर्शन चार पाते हैं। * पांच स्थावर, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय में दर्शन एक-अचक्षुदर्शन पाता है। * चतुरिन्द्रिय, असंज्ञी तिर्यंच पंचेन्द्रिय, असंज्ञी मनुष्य और सर्वयुगलियां ___में दर्शन दो पाते है-चक्षुदर्शन, अचक्षुदर्शन। * सिद्धों में दर्शन एक–केवलदर्शन। 200 कर्म-दर्शन 131
SR No.032424
Book TitleKarm Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanchan Kumari
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2014
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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