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________________ सामान देखते ही मुखिया बोल उठा - 'अरे! यह धनुष तो सुदंत का ही यह पात्र भी उसी का है यह सब सामान कहां से मिला ?' टोली के नायक ने कहा - 'सुदंत के पदचिह्नों का अनुसरण करते-करते हम गंगा के किनारे उस सरोवर तक पहुंच गए। वहां ये सारी वस्तुएं पड़ी थीं और कुछ ही दूरी पर एक चिता ठंडी पड़ी हुई देखी हमने उस चिता को टंटोला केवल हड्डियों के अतिरिक्त कुछ नहीं मिला " किन्तु उस ठंडी चिता में हमें एक वस्तु प्राप्त हुई, कहकर नायक ने एक लोहे का ताबीज निकाला। उसकी डोरी जल गई थी परन्तु ताबीज अखंड था। इस ताबीज को देखते ही मुखिया बोल पड़ा-'यह ताबीज तो सुदंत का ही है क्या यह चिता में प्राप्त हुआ था ?' 'हां दादा!' 'सुदंत के पदचिह्न आगे तो नहीं दीखे ?' 'नहीं. हमने बहुत खोज की और नई बात तो यह है कि इतनी दूरी में और किसी के पदचिह्न हमने नहीं देखे हां, एक हाथी के पदचिह्न अवश्य थे।' वृद्ध मंडली के सदस्यों ने विचारणा प्रारंभ की। दीर्घ चिन्तन के पश्चात् यह निर्णय हुआ कि किसी घोर कापालिक ने सुदंत का भोग लिया है और उसे जीवित जला डाला है। और पूरी पल्ली शोकाकुल होकर चिल्लाने - चीखने लगी। वासरी का रुदन अत्यंत करुण और वनप्रदेश को प्रकंपित कर देने वाला • सुदंत की बहिन का रुदन भी कलेजे को कंपित कर देने वाला था। किन्तु मृत मनुष्य को सभी धीरे-धीरे भूलते जाते हैं और एक दिन ऐसा आता है कि वह सदा-सदा के लिए विस्मृति के गर्त में विलीन हो जाता है। था छह महीने बाद वासरी का पुनः विवाह एक सुंदर पारधी के साथ कर दिया गया। सुदंत विस्मृत हो गया "परन्तु उसकी वीरता यदा-कदा सबको याद आती रहती । ५. रुद्रयष वाराणसी नगरी ! हजारों वर्षों से नवयौवना की भांति स्थित पूर्व भारत की एक महानगरी ! गंगा के तट प्रदेश को अलंकृत करने वाली तथा राष्ट्र के प्राणों में परम आदर प्राप्त वाराणसी महानगरी ! शस्त्र, शास्त्र, कला, कर्मकांड, वेदाध्ययन, षड्दर्शन, व्याकरण, काव्य, संगीत आदि किसी भी व्यावहारिक अथवा आध्यात्मिक ज्ञान की संपदा प्राप्त करनी हो तो राष्ट्र के सभी बटुक, तरुण और पंडित वाराणसी के चरण चूमने आ पूर्वभव का अनुराग / ३३
SR No.032422
Book TitlePurvbhav Ka Anurag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2011
Total Pages148
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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