SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 95
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ के उद्देश्य से धर्मशाला आदि बनाते है, उनमें शाक्यादि भिक्षु ठहरे हुए हों अथवा गृहस्थ अपने काम में ले रहा हो,वहां कोई साधु ठहरता है तो अभिक्रांत क्रिया लगती है।15 अनभिक्रांत क्रिया - कई श्रद्धालु अज्ञानवश श्रमण-ब्राह्मण आदि के लिये भवन आदि का निर्माण कराते हैं। उन स्थानों में श्रमण आदि नहीं ठहरे हों, काम में नहीं लिया हो, फिर भी साधु उनमें आकर रहे तो अनभिक्रांत क्रिया लगती है।16 वर्ण्य क्रिया ____ कई श्रद्धालु साधु के आचार से परिचित होते हैं कि संयत, संवृत, संयमी अपने लिये निर्मित भवन आदि में नहीं ठहरते हैं। आधाकर्मिक दोष युक्त उपाश्रय काम में नहीं लेते है। अतः अपने लिये निर्मित विशाल मकान उन्हें यह सोचकर दे कि हम अपने लिये दूसरा मकान बनवा लेगें। ऐसे मकान में साधु ठहरता है तो वर्ण्य क्रिया का दोष लगता है।17 सावध क्रिया कई अज्ञान वश श्रमण - ब्राह्मण आदि के रहने के लिये अलग-अलग सामुदानिक भवन का निर्माण करवाते हैं। इस तथ्य की अवगति पाकर भी यदि साधु उस भवन में रहता है तो सावध क्रिया लगती है।18 महासावध क्रिया कई श्रद्धालु किसी एक श्रमण को लक्षित कर मकान आदि बनवाता है। तदर्थ षट्जीवनिकाय का महान आरंभ-समारंभ करता है। क्योंकि साधु के निमित्त विशेष क्रियाएं-लिपाई-पोताई, शीतल जल का छिड़काव, द्वार ढ़कना, अग्नि प्रज्वलित करना इत्यादि करवाता है। ऐसे स्थान पर रहने से साधु की महासावध क्रिया लगती है। अल्पसावध क्रिया गृहस्थ ने अपने लिये महान् आरंभ-समारंभ करके भवन आदि का निर्माण करवाया, लिपाई आदि विशेष क्रियाएं भी की। उस मकान में रहने से साधु को अल्प क्रिया लगती है, क्योंकि वह गृहस्थ के लिये निर्मित है। अल्प शब्द का अर्थ यहां अभाववाची है अर्थात् ऐसे मकान में रहने से साधु को कोई पाप नहीं लगता है। 20 क्रिया के प्रकार और उसका आचारशास्त्रीय स्वरूप 35
SR No.032421
Book TitleAhimsa ki Sukshma Vyakhya Kriya ke Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaveshnashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2009
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy