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________________ परक्रिया पर अर्थात् गृहस्थ के द्वारा मुनि के लिये की जानेवाली क्रिया, चेष्टा, व्यापार, कर्म, परक्रिया कहलाती है। किसी अन्य व्यक्ति द्वारा भिक्षु के शरीर सम्बन्धी क्रिया करना परक्रिया है। जैसे- साधु का पैर धोना, पौंछना, साफ करना। इसी प्रकार अन्य अवयव सम्बन्धी या बीमार अवस्था में परिचर्या करना परक्रिया के अर्न्तगत है। अन्योन्यक्रिया पारस्परिक सेवा, सहयोग के रूप में दान - प्रतिदान की अभिलाषा से की गई क्रिया अन्योन्यक्रिया है। परक्रिया की तरह यह भी ज्ञातव्य है। परक्रिया में गृहस्थ साधु की परिचर्या करता है। जबकि अन्योन्यक्रिया में परस्पर सेवा देना, सेवा लेना आदि का समावेश है। सूत्रकृतांग आदि में क्रिया के प्रकार सूत्रकृतांग आदि में 13 क्रियाओं का वर्णन मिलता है। उनमें कर्मबंध और मुक्ति की हेतुभूत दोनों प्रकार की क्रियाओं का निर्देश किया गया है। सूत्रकृतांग के दूसरे अध्ययन का नाम क्रिया-स्थान है।21 इसमें कर्म-बंध की कारणभूत 12 क्रियाओं का साम्परायिकी क्रिया के अन्तर्गत और कर्म-बंध से मुक्त होने की क्रिया ऐर्यापथिकी क्रिया के अन्तर्गत प्रतिपादित है। अर्थ दण्ड आदि बारह क्रियाओं से पापकर्म का बंध होता है। यद्यपि ऐर्यापथिकी क्रिया से पुण्य कर्म का बंध होता है फिर भी शुभ योगात्मक होने से आचरणीय है। बारह क्रियाएं अशुभ-योगात्मक है अतः सर्वथा अनाचरणीय है। आवश्यक सूत्र के अन्तर्गत पडिक्कमामि तेरसहि किरियाठाणेहि' पाठ से तेरह क्रियाओं को ग्रहण किया है। उनमें पांच क्रियाओं को दण्ड-समादान कहा है तथा अन्य आठ को केवल क्रिया-स्थान कहा है। इस भेद के विषय में चूर्णि और वृत्ति में विमर्श प्राप्त है। प्रथम पांच में प्रायः परोपघात होता है इसलिये उन्हें दण्ड-समादान कहा है। शेष में परोपघात की संभावना नहीं होने से उन्हें क्रिया-स्थान कहा हैं। तेरह क्रियाओं में प्रवृत्ति की प्रेरणाभूत, प्रकार और परिणाम जनित क्रियाओं का समावेश है। दण्ड शब्द हिंसा का वाचक है। एक शब्द अनेक अर्थों का अभिव्यंजक होता है। दण्ड का सामान्य अर्थ है-प्रायश्चित। विधि-विधानों का अतिक्रमण करने पर दण्ड देने का प्रचलन केवल धार्मिक क्षेत्र में ही नहीं, सामाजिक और राजनैतिक सभी क्षेत्रों में रहा है। 36 अहिंसा की सूक्ष्म व्याख्याः क्रिया
SR No.032421
Book TitleAhimsa ki Sukshma Vyakhya Kriya ke Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaveshnashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2009
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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