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________________ का उल्लेख मिलता है। स्थानांग में 1,2,3 तथा 5, 5 भेद करके पांच पंचक उपलब्ध हैं। भगवती, प्रज्ञापना में 'काइया, आरंभिया' ऐसे दो पंचकों का वर्णन है तथा भगवती और प्रज्ञापना में अठारह पापस्थानों का भी क्रिया के रूप में उल्लेख प्राप्त उल्लेखों के अनुसार क्रिया के तीन वर्गीकरण किये जा सकते हैं1. दस और तेरह क्रियाओं का उल्लेख आचारांग, सूत्रकृतांग, समवायांग व आवश्यक सूत्र में उपलब्ध है। 2. ठाणांग सूत्र में है मुख्य - गौण भेद से बहत्तर (72) क्रियाओं का निर्देश 3. तत्त्वार्थसूत्र में पच्चीस क्रियाओं का प्रतिपादन है।12 प्रथम वर्गीकरण श्रमण साधना में निरन्तर जागरूक होता है। फिर भी कभी-कभी प्रमादवश साध्वाचार का अतिक्रमण हो जाता है। इस संदर्भ में आचारांग में 10 क्रियाओं का नामोल्लेख है- (1) कालातिक्रान्त क्रिया (2) उपस्थान क्रिया (3) अभिक्रान्त क्रिया (4) अनभिक्रान्त क्रिया (5) वर्ण्य क्रिया (6) सावध क्रिया (7) महासावद्य क्रिया (8) अल्पसावद्य क्रिया (9) परक्रिया (10) अन्योन्य क्रिया। कालातिक्रान्त धर्मशाला, आरामगृह, मठ, आश्रम, उपाश्रय, बगीचा आदि में साधु - साध्वी ऋतुबद्ध शीतोष्णकाल में मासकल्प तथा वर्षावास व्यतीत करने के बाद बिना प्रयोजन पुनःपुनः वहां आकर रहते हैं तो कालातिक्रांत क्रिया लगती है।13 उपस्थान क्रिया जिस स्थान पर मास कल्प या वर्षावास व्यतीत किया उसी स्थान पर अन्यत्र विहार किये बिना दो-तीन मास या चतुर्मास प्रयोजन रहना उपस्थान क्रिया है। 14 अभिक्रांत क्रिया साधु के आचार-व्यवहार से अनभिज्ञ श्रद्धालु जन अन्य मतावलम्बी, शाक्यादि भिक्षुओं, ब्राह्मण-अतिथि, भिखारी आदि के उद्देश्य से तथा अपने व्यवसाय या परिवार अहिंसा की सूक्ष्म व्याख्याः क्रिया
SR No.032421
Book TitleAhimsa ki Sukshma Vyakhya Kriya ke Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaveshnashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2009
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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