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________________ क्रिया : नयदृष्टि वस्तु अनन्त धर्मात्मक है। शब्द शक्ति की सीमा है। अतः अनन्त धर्मों की अभिव्यक्ति संभव नहीं। यह एक समस्या है। नय सिद्धांत उसका समाधान है। नय सात हैं- 1 नैगम, 2 संग्रह, 3 व्यवहार, 4 ऋजुसूत्र, 5 शब्द, 6 समभिरूढ़, 7 एवंभूत। नय आधार पर क्रिया का विवेचन इस प्रकार है- सभी संसारी जीव सक्रिय हैं। यह नैगम और संग्रह नय का अभिमत है। शरीर प्राप्ति के पश्चात् क्रिया होती है, यह व्यवहार नय है। क्रिया अथवा प्रवृत्ति में मुख्य रूप से वीर्य का परिणमन होता है, यह ऋजुसूत्र का अभिमत है । शब्दनय की दृष्टि से विचार करे तो वीर्य आत्मा की परिस्पंदन रूप क्रिया है। समभिरुढ़ से साधना के अनुरूप सर्व कर्तव्य करना- क्रिया है, जीव परिस्पंदन की सहायता से जो गुण - परिणमन होता है, वह क्रिया एवंभूतनय की अपेक्षा से है। क्रिया और निक्षेप निक्षेप नियुक्तिकालीन व्याख्या पद्धति का मुख्य अंग है। यह जैन परम्परा की मौलिक अवधारणा है, द्रव्य के अनन्त पर्याय है। अनन्त पर्यायों को समझने के लिये एक शब्द अनेक अर्थों में प्रयुक्त होता है। फलत: विवक्षित अर्थ-बोध नहीं होता। उलझन खड़ी होती है। निराकरण के लिये निक्षेप पद्धति का आविष्कार हुआ। अप्रस्तुत अर्थ का निराकरण और प्रस्तुत अर्थ का बोध निक्षेप द्वारा होता है। निक्षेप पद्धति का शब्दमीमांसा में महत्वपूर्ण स्थान है। नियुक्तिकार ने निक्षेप पद्धति से क्रिया का विवेचन करते हुए नाम और स्थापना का उल्लेख नहीं किया। द्रव्य और भाव के संदर्भ में अपना अभिमत प्रस्तुत किया है। द्रव्य की अपेक्षा जीव और अजीव की परिस्पंदन रूप क्रिया द्रव्य क्रिया है। जिस क्रिया कर्म बंध होता है, वह भाव क्रिया है । द्रव्य क्रिया के प्रायोगिक और वैस्रसिक-दो भेद हैं, भाव क्रिया के प्रयोग क्रिया, उपाय क्रिया, करणीय क्रिया, समुदान क्रिया, ऐर्यापथिक क्रिया, सम्यक्त्व क्रिया, मिथ्यात्व क्रिया आदि अनेक भेद है। क्रिया के प्रकार आगमों में क्रिया के समस्त भेदों का एक स्थान पर उल्लेख नहीं मिलता है। संक्षेप में उसके दो प्रकार हैं- जीव क्रिया, अजीव क्रिया । विस्तार में आचारांग के द्वितीय श्रुत स्कंध में दस, सूत्रकृतांग में तेरह तथा समवायांग में क्रिया, अक्रिया के एक-एक भेद क्रिया के प्रकार और उसका आचारशास्त्रीय स्वरूप 33
SR No.032421
Book TitleAhimsa ki Sukshma Vyakhya Kriya ke Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaveshnashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2009
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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