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________________ न्याय-वैशेषिकों को दो कारणों से मन की कल्पना करनी पड़ी। पहला कारणवे चेतन को कूटस्थ नित्य मानते हैं। दूसरा, उनके मत में आत्मा व्यापक है। अत: पुनर्जन्म को सिद्ध करने के लिये शुभाशुभ संस्कारों से युक्त मन का स्थानान्तरण ही ज्यादा उपयुक्त है। सांख्ययोग और वेदान्त के आधार पर मन अनित्य है। उसकी उत्पत्ति अहंकार या अविद्या से होती है। बौद्ध दर्शन मन को क्षणिक स्वीकार करता है। मन का अस्तित्व मन एक अदृश्य शक्ति है। सामान्यत: मन के अस्तित्व का बोध नहीं होता। यही कारण है कि उसके स्वरूप के बारे में अलग-अलग विचार धाराएं देखने को मिलती है। उसके अस्तित्व की सिद्धि के लिए निम्नोक्त तर्क देखे जाते हैं अन्नभट्ट ने सुख आदि की प्रत्यक्ष उपलब्धि को मन का लिंग (चिन्ह) माना हैं।' वात्स्यायन भाष्यकार के अभिमत से स्मृति आदि ज्ञान बाह्य इन्द्रियों से उत्पन्न नहीं होता तथा विषय और इन्द्रियों की विद्यमानता में भी संकलनात्मक ज्ञान संभव नहीं। इससे मन का अस्तित्व स्वयं सिद्ध है।10 ___ न्याय सूत्रकार भी मानते हैं कि किसी भी इन्द्रिय से एक साथ अनेक ज्ञान की उत्पत्ति नहीं होती। अत: वे अनेक ज्ञान की सिद्धि के लिए मन की सत्ता स्वीकार करते हैं।11 जैन दर्शन के अनुसार संशय, प्रतिभा, स्वप्नज्ञान, वितर्क, सुख-दुःख, क्षमा, इच्छा आदि मन के लिंग हैं।12 मन का स्थान मन का स्थान कहां है ? इस संदर्भ में चार प्रकार की विचारधाराएं हैं1. कुछ दार्शनिक परम्पराओं के अनुसार मन सम्पूर्ण शरीर में व्याप्त है। 2. कुछ योगाचार्यों के अभिमत से मन का स्थान हृदय से नीचे है। 3. मन का स्थान हृदय कमल है। हृदय कमल की आठ पंखुडियां हैं, वही मन का स्थान है। 4. वर्तमान शरीर-शास्त्र के अभिमत से मन का स्थान मस्तिष्क है। न्याय, वैशेषिक और बौद्ध मत के अनुसार मन का स्थान हृदय है।13 सांख्य, वेदान्त आदि दर्शनों में मन आदि अष्टादश तत्त्व लिंग शरीर कहलाते हैं। उनका स्थान क्रिया और मनोविज्ञान 363
SR No.032421
Book TitleAhimsa ki Sukshma Vyakhya Kriya ke Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaveshnashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2009
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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