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________________ केवल हृदय नहीं, सम्पूर्ण स्थूल शरीर होना चाहिये क्योंकि सूक्ष्म लिंग शरीर का स्थान सम्पूर्ण स्थूल शरीर है।14 मन का स्थान हदय है। इसके पक्षधर अनेक हैं। इसके मूलस्रोत की खोज करें तो इसका आधार औपनिषदिक परम्परा में दिखाई देता है। छान्दोग्योपनिषद् और कठोपनिषद् में आत्मा को हृदय गुहा में अवस्थित माना है।15 दूसरा, मन, चित्त, स्वान्तः और हृदय को अमरकोश में एकार्थक माना है। इससे भी उक्त अवधारणा का जन्म हुआ है, ऐसा प्रतीत होता है। योगदर्शन में भी विज्ञानवृत्तिक चित्त, आत्मा तथा परमात्मा का स्थान हृदय- ब्रह्मपुर माना गया है। ब्रह्मपुर-पुण्डरीक आकार वाले गर्त के समान है।16 कुछ परम्परा मन का स्थान पूरा शरीर मानती हैं। यह मान्यता भी सापेक्ष है। शरीर के स्नायु- संस्थान में जितने भी विषय-ग्राही स्नायु हैं, उनका जाल सम्पूर्ण शरीर में व्याप्त है। इसी आधार पर मन शरीर व्यापी सिद्ध होता है। मन हृदय के नीचे है - यह भी कथन सापेक्ष है। सुषुम्ना की एक धारा का सम्बन्ध हृदय से है। इसलिये हृदय को मन का केन्द्र मानना भी युक्ति पुरस्सर है। _ 'यत्र पवनस्तत्रमनः' इस प्रसिद्ध उक्ति के अनुसार- जहां श्वास है वहां मन भी है। इस दृष्टि से भी मन का स्थान सम्पूर्ण शरीर में सिद्ध होता है। वैज्ञानिक दृष्टि से इन्द्रिय-पर्याप्ति पौद्गलिक शक्ति है। वह सार्वजनिक है। यह प्रत्येक प्राणी में अनिवार्यतः पाई जाती है। किन्तु मन-पर्याप्ति कुछ विशिष्ट पंचेन्द्रिय प्राणियों में ही पाई जाती हैं। चिन्तन,मनन, स्मृति आदि मानसिक क्रियाएं स्नायु मंडल द्वारा संचालित एवं नियंत्रित होती है। जो कि मन के कार्य हैं। स्नायु का संबंध मस्तिष्क से है। मस्तिष्क के दो विभाम हैं- बृहन्मस्तिष्क, लघुमस्तिष्क। मन का मुख्य केन्द्र बृहन्मस्तिष्क है। बृहन्मस्तिष्क में जो चैतन्य धारा प्रकट होती है, उसमें त्रैकालिक ज्ञान की क्षमता है, उसका नाम मन है। __ जैन दर्शन के अनुसार भावमन का स्थान आत्मा है। द्रव्य मन के संदर्भ में दो अभिमत हैं। दिगम्बर परम्परा में द्रव्य-मन मनोवर्गणा के पुद्गलों से निर्मित है। उसकी आकृति आठ पंखुडी वाले कमल जैसी है। वह वीर्यान्तराय एवं नो-इन्द्रियावरण के क्षयोपशम तथा नामकर्म के उदय से प्राप्त होता है। वह हृदय प्रदेशवर्ती है। श्वेताम्बर परम्परा के अनुसार मनन काल में मनोवर्गणा के पुद्गलों की जो आकृतियां बनती हैं, वे अहिंसा की सूक्ष्म व्याख्याः क्रिया 364
SR No.032421
Book TitleAhimsa ki Sukshma Vyakhya Kriya ke Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaveshnashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2009
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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