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________________ इसमें सन्देह नहीं कि उक्त विवेचन पूर्णत: मौलिक व गम्भीर है। अन्त में, मैं इस विषय पर नवीनतम शोधकार्य का उल्लेख करना चाहूंगा। 'क्रिया' से सम्बन्धित उपर्युक्त दार्शनिक व वैज्ञानिक विचारणाओं की पृष्ठभूमि में, श्रद्धया साध्वीश्री गवेषणाश्री जी द्वारा 'क्रिया का दार्शनिक और वैज्ञानिक अनुशीलन' शीर्षक प्रस्तुत किया गया था जिस पर जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय), लाडनूं (राज.) की ओर से पी-एच. डी. की उपाधि प्रदान की जा चुकी है। यह प्रकाशित भी हो रहा है। अत: जैन विद्या के संदर्भ में क्रिया-विषयक विस्तृत विवरण इसमें देखा जा सकता है। अत: जैन दर्शन से सम्बन्धित क्रिया के विवेचन को मैंने इस निबन्ध में पूर्णतया संक्षिप्त ही रखा है। प्रसंगवश पाठकों के लाभार्थ इस शोधप्रबन्ध का संक्षिप्त परिचय देना चाहता हूं। समस्त शोधप्रबन्ध को आठ अध्यायों में विभक्त किया गया है, उनके नाम इस प्रकार हैं (1) क्रिया की दार्शनिक पृष्ठभूमि (2) क्रिया के प्रकार और आचारशास्त्रीय स्वरूप (3) क्रिया और कर्म-सिद्धान्त (4) क्रिया और पुनर्जन्म (5) क्रिया और अन्तक्रिया (6) क्रिया और परिणमन का सिद्धान्त (7) क्रिया और शरीरविज्ञान (8) क्रिया और मनोविज्ञान इस ग्रन्थ में पूज्य साध्वीश्री जी ने विषय से सम्बद्ध सभी सम्भावित पक्षों को स्पष्ट करने हेतु, जैन आगमों एवं दार्शनिक ग्रन्थों में यत्र-तत्र विकीर्ण क्रियाविषयक सामग्री को एकत्रित कर एक व्यापक व सर्वांगीण निरूपण तथा सुन्दर व संगत विवेचन-विश्लेषण प्रस्तुत किया है। पारम्परिक जैन दार्शनिक विचारधारा के साथ-साथ, आधुनिक विज्ञान (शरीरविज्ञान, मनोविज्ञान, रसायन व भौतिक विज्ञान) में स्वीकृत मान्यताओं व निष्कर्षों के परिप्रेक्ष्य में समस्त विषय के सर्वांगीण विवेचन करने में पूज्य साध्वीश्री जी पूर्ण सफल रही हैं- यह निर्विवाद रूप से कहा जा सकता है। यह भी इस ग्रन्थ की विशेषता है कि इसमें सम्प्रदाय-विशेष के ग्रन्थों को नहीं, अपितु उदार दृष्टि से दिगम्बर, श्वेताम्बर आदि सभी सम्प्रदायों के दृष्टिकोणों को समाहित करने का सफल प्रयास हुआ है। XXI
SR No.032421
Book TitleAhimsa ki Sukshma Vyakhya Kriya ke Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaveshnashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2009
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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