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________________ वृत्तिकार ने प्रश्न उठाया कि कर्म-बंध के हेतु मिथ्यात्व, अविरति, कषाय, योग आदि आश्रव माने गये हैं। फिर आरंभ आदि को भी कर्म-बंध में निमित्त मानने से क्या परस्पर विरोध नहीं आता ? इसका समाधान वे स्वयं करते हुए लिखते हैं कि आरंभ और परिग्रह योग के भेद है। ये सारी क्रियाएं आश्रव से ही सम्बद्ध हैं इसलिये विरोध का प्रसंग उपस्थित नहीं होता !162 आरम्भिकी क्रिया - जीवों के उपमर्दन की प्रवृत्ति।163 पारिग्रहिकी क्रिया - धन के अर्जन-रक्षण में मूर्छा जन्य प्रवृत्ति।164 मायाप्रत्यया क्रिया - मायात्मक प्रवृत्ति। अप्रत्याख्यान क्रिया - अविरतिमय प्रवृत्ति। मिथ्यादर्शन क्रिया - मिथ्यादर्शनात्मक प्रवृत्ति। ये सब क्रियाएं कर्म के आश्रवण की निमित्त बनती हैं। परिणाम की तीव्रता - मंदता के आधार पर क्रिया की सघनता और विरलता हो जाती है। उमास्वाति ने लिखा है 'तीव्र-मंद-ज्ञाताज्ञातभाव वीर्याधिकरणविशेषेभ्यस्तद्विशेषः।'165 इन पांच क्रिया सूत्रों में गृहस्थ में आरंभिकी आदि चारों क्रिया की संभावना स्पष्ट हो जाती है। मिथ्यादर्शन प्रत्यया का सम्बन्ध मिथ्यात्वी से है। सम्यग्दृष्टि में यह क्रिया नहीं होती इसलिये विकल्प रूप से निर्दिष्ट है। भगवती भाष्य में क्रय-विक्रय के सम्बन्ध में गौतम ने प्रश्न किया कि एक गृहस्थ भाण्ड (बर्तन) बेच रहा है। उस समय भाण्ड का कोई अपहरण कर लेता है। अर्पत भाण्ड की गवेषणा करते हुए गृहस्थ को उक्त पांच क्रियाओं में से कितनी क्रियाएं स्पृष्ट करती हैं ?166 समाधान दिया गया-प्रथम, गृहपति अपनी अपहत वस्तु की खोज करता है। उसके आरंभिकी आदि चार क्रियाएं स्पृष्ट होती है। खोज करने पर वस्तु मिल जाती है तब वे क्रियाएं प्रतनु (पतली) हो जाती हैं। कारण स्पष्ट है, खोज के समय प्रयत्न अधिक होता है। वस्तु मिलने पर वह प्रयत्न शिथिल पड़ जाता है। दूसरा, खरीददार को क्रीत वस्तु प्राप्त हो गई, उसके क्रिया चतुष्क होती है। विक्रेता के क्रियाचतुष्क प्रतनु हो जाती है। तीसरा, खरीददार को खरीदी हुई वस्तु प्राप्त नहीं हुई इसलिये उस वस्तु विषयक क्रिया हो तो चतुष्क प्रतनु और विक्रेता के स्पृष्ट होती है क्योंकि बेची गई वस्तु विक्रेता के अधिकार में है। चौथा, खरीददार ने वस्तु खरीदने का वचन दिया किन्तु विक्रेता को कीमत भुगतान नहीं की, उस स्थिति में विक्रेता के क्रिया चतुष्क प्रतनु और खरीददार के पुष्ट होता है। कारण, धन अभी खरीददार के अधिकार में है। पांचवां, विक्रेता को बेची हुई वस्तु की कीमत मिल गई, इस अवस्था में विक्रेता के क्रिया चतुष्क 86 अहिंसा की सूक्ष्म व्याख्याः क्रिया
SR No.032421
Book TitleAhimsa ki Sukshma Vyakhya Kriya ke Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaveshnashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2009
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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