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________________ (3) कोटि सहित प्रत्याख्यान- इस प्रत्याख्यान की अर्थ-परम्परा में दो भिन्न मत है। अभयदेवसूरि के अनुसार इसका अर्थ है- प्रथम दिन के उपवास की समाप्ति और दूसरे दिन के उपवास के प्रारंभ के बीच के समय में व्यवधान न होना। वसुनंदि श्रमण के अनुसार यह संकल्प समन्वित प्रत्याख्यान की प्रक्रिया है। किसी मुनि ने संकल्प किया- अगले दिन स्वाध्याय-वेला होने पर यदि शक्ति ठीक रही तो मैं उपवास करुंगा, अन्यथा नहीं करूंगा। यह संकल्प समन्वित प्रत्याख्यान है। (4) नियंत्रित-प्रत्याख्यान वज्रऋषभ- यह नाराच संहनन चौदह पूर्वधर, जिनकल्पी और स्थाविरों के होता था। वर्तमान में यह व्युच्छिन्न माना जाता है। साकार प्रत्याख्यान- अपवाद सहित प्रत्याख्यान। अनाकार प्रत्याख्यान- अपवाद रहित प्रत्याख्यान। (7) परिमाणकृत प्रत्याख्यान- दत्ति, कवल, भिक्षा, गृह, द्रव्य आदि के परिमाण युक्त प्रत्याख्यान। निरवशेष प्रत्याख्यान- अशन,पान,खाद्य और स्वाद्य का सम्पूर्ण परित्याग युक्त प्रत्याख्यान। (9) संकेत प्रत्याख्यान-संकेत या चिह्न सहित किया जाने वाला प्रत्याख्यान। (10) अध्वा प्रत्याख्यान- मुहूर्त, पौरुषी आदि कालमान के आधार पर किया जाने वाला प्रत्याख्यान। नियुक्ति काल में उत्तरगुण का दूसरा वर्गीकरण मिलता है। उसके अनुसार बारह प्रकार का तप उत्तर गुण है।134उपासक दशा में मूल गुण, उत्तर गुण का विभाग नहीं है। बारह व्रतों के अन्तर्गत पांच अणुव्रत, सात शिक्षा व्रत के रूप में इनका नामोल्लेख है। आवश्यक चूर्णि में पांच अणुव्रत, तीन गुणव्रत, चार शिक्षाव्रत- ऐसे तीन विभाग मिलते हैं। तत्त्वार्थ भाष्य में यह विभाग उपलब्ध नहीं है। इससे लगता है कि गुणव्रत, शिक्षाव्रत का विभाग तत्त्वार्थ सूत्र की रचना के उत्तरकाल में विकसित हुआ है। सर्वार्थसिद्धि और भगवती आराधना में व्रतों की संख्या का क्रम भिन्न है। वहां गुणव्रत, शिक्षाव्रत का उल्लेख है। किन्तु गुणव्रत में दिग्व्रत, देशावकाशिक और अनर्थदण्ड- ये तीन लिये हैं।135 सिद्धसेन गणी ने दिग्व्रत, उपभोग-परिभोग परिमाण 78 अहिंसा की सूक्ष्म व्याख्याः क्रिया
SR No.032421
Book TitleAhimsa ki Sukshma Vyakhya Kriya ke Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaveshnashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2009
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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