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________________ अभिहया (अभिहताः ) वत्तिया (वर्तिता:) लेसिया (श्लेषिता: ) संघाइया ( संघातिता: ) संघट्टिया (संघट्टिता: ) परियाविया (परितापिता:) किलामिया ( क्लामिता : ) उद्दविया (उद्रापिता:) ठाणाओ ठाणं संकामिया (स्थानात् स्थानं संक्रामिता ) जीवियाओ ववरोविया ( जीवितात् व्यपरोपिता : ) — आघात पहुंचाना। रज आदि से आच्छादित करना । सामान्य पीड़ा से लेकर प्राण-वियोग तक ये क्रियाएं दैनिक जीवन में घटित होती रहती हैं। हिंसा का कार्य तीन भूमिकाओं पर सम्पादित होता है. - - भूमि आदि पर मर्दन करना। जीवों का संग्रह करना । स्पर्श करना । परिताप पैदा करना। मृतप्राय: कर देना। आतंकित करना। (1) कायिक व्यापार में तत्परता और अधिकरणों का अधिग्रहण - यह प्रथम भूमिका है। (2) पारिताप देना, पीड़ा पहुंचाना - यह दूसरी भूमिका है। (3) प्राणों का व्यपरोपण करना - यह तीसरी भूमिका है। आम भाषा में उपर्युक्त भूमिकाओं को इस प्रकार व्याख्यायित किया जाता है संरम्भ हिंसा का संकल्प, हिंसा करने का आयोजन। समारम्भ पारिताप उत्पन्न करना। एक स्थान से दूसरे स्थान पर अयत्ना से रखना। प्राण रहित कर देना । - आरम्भ प्राणों का अतिपात करना । हिंसा की क्रिया को संक्षेप में दो भागों में भी विभक्त किया गया है- पारितापनिकी और प्राणातिपातिकी । क्रिया के प्रकार और उसका आचारशास्त्रीय स्वरूप 53
SR No.032421
Book TitleAhimsa ki Sukshma Vyakhya Kriya ke Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaveshnashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2009
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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