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________________ १५. चौबीसी और आचार्य जय जयाचार्य कृत चौबीसी का चतुर्विंशति या चौबीसियों में एक महत्त्वपूर्ण स्थान है जिसका प्रमुख कारण है कि उनके द्वारा कृत चौबीसी में सम्पूर्ण जैन वाङ्मय का सार निहित है। उसके एक-एक पद्य में उनकी आन्तरिक आस्था बोल रही है। उसका एक-एक शब्द मंत्रोपम है। उसमें ध्यान के मूल तत्त्व और अनुप्रेक्षा का समीचीनता के साथ प्रतिपादन हुआ है। चौबीसी में चौबीस तीर्थंकरों की स्तुति है। इसका मूल आधार ‘उक्कित्तणं' (लोगस्स उज्जोयगरे...) लोगस्स का पाठ है, जिसमें चौबीस तीर्थंकरों का स्तव है। इसे चउवीसत्थव (चतुर्विंशति स्तव) भी कहा जाता है। तीर्थंकरों की स्तुति संयुक्त और वियुक्त-दोनों रूपों में उपलब्ध होती है। संयुक्त का एक रूप रहा है-चौबीस तीर्थंकरों का युगपत् गुणस्तवन। यह गुणस्तवन सर्व प्रथम आवश्यक सूत्र में 'उक्कित्तणं' सूत्र पाठ के नाम से प्राप्त होता है। इसे चतुर्विंशति स्तव के नाम से भी जाना जाता है। इसका दूसरा रूप है दो, तीन, चार, पांच आदि तीर्थंकरों की स्तुति। वियुक्त रूप में की गई तीर्थंकर स्तुति की भी दो विधाएं रही हैं। एक सामान्य रूप से गुणोत्कीर्तन और दूसरा सैद्धान्तिक विषयों के निरूपण के साथ कीर्तन। इनमें से अनेक पर वृत्ति, चूर्णि, अवचूर्णि, विवरण, स्तबक, टिप्पण आदि भी लिखे गये हैं। वे स्वोपज्ञ तथा अन्यकृत दोनों रहे हैं। __जयाचार्य कृत चौबीसी का चतुर्विंशति या चौबीसियों में एक महत्त्वपूर्ण स्थान है। जिसका प्रमुख कारण है कि उनके द्वारा कृत चौबीसी में सम्पूर्ण जैन वाङ्मय का सार निहित है। उसके एक-एक पद्य में उनकी आन्तरिक आस्था बोल रही है। उसका एक-एक शब्द मंत्रोपम है। उसमें ध्यान के मूल तत्त्व और अनुप्रेक्षा का समीचीनता के साथ प्रतिपादन हुआ है। आचार्यश्री महाप्रज्ञजी के शब्दों में-“यह ध्यान योग की विशिष्ट रचना है। चौबीसी और आचार्य जय / १३६
SR No.032419
Book TitleLogassa Ek Sadhna Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyayashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2012
Total Pages190
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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