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________________ कायोत्सर्ग को आवश्यक नाम व्रत चिकित्सा कहा है अर्थात् व्रत में लगे हुए अतिचारों के दोषों को दूर कर कायोत्सर्ग आत्मा को निर्मल एवं शांत बना देता है। प्रवचन सारोद्धार में २६ एवं विजयोदया वृत्ति में ३८ कायोत्सर्ग के ध्यान का, परिमाण और कालमान निम्न प्रकार से उल्लिखित है प्रवचन सारोद्धार कायोत्सर्ग चतुर्विंशति स्तव श्लोक चरण उच्छ्वास दैवसिक ४ २५ १०० १०० रात्रिक २ १२ + ५० ५० पाक्षिक १२ ७५ ३०० ३०० चातुर्मासिक १२५ ५०० ५०० संवत्सरिक २५२ १००८ १००८ विजयोदया वृत्ति कायोत्सर्ग चतुर्विंशति स्तव श्लोक चरण उच्छ्वास दैवसिक ४ २५ १०० १०० रात्रिक ५० ५० पाक्षिक १२ ७५ 300 300 चातुर्मासिक १०० ४०० संवत्सरिक २० १२५ ५ ०० ५०० 640 १२ ४०० आवश्यक नियुक्ति के अनुसार कायोत्सर्ग का उच्छ्वास निम्न प्रकार है३१ कायोत्सर्ग उच्छ्वास दैवसिक १०० रात्रिक ५० पाक्षिक ३०० चातुमासिक ५०० संवत्सरिक १००८ अन्य अनेक प्रयोजनों में ८, १६, २५, २७, १०८ उच्छ्वासमान कायोत्सर्ग का विधान है।३२ नमस्कार महामंत्र की नौ आवृत्तियां २७ श्वासोच्छ्वास में की जाती है।३ उच्छ्वास का कालमान एक चरण के समान मान्य हैं।३४ तेरापंथ परम्परा में मघवा युग के अनेक वर्षों तक पांचों प्रतिक्रमणों में चार ८२ / लोगस्स-एक साधना-२
SR No.032419
Book TitleLogassa Ek Sadhna Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyayashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2012
Total Pages190
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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