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________________ लोगस्स (चतुर्विंशतिस्तव) का ध्यान करने की परिपाटी थी। तेरापंथ के पंचम आचार्य, आचार्य श्री मघराजजी ने पर्व दिन की विशेषता तथा अधिक स्वाध्याय लाभ की दृष्टि से पाक्षिक प्रतिक्रमण के लिए १२ लोगस्स, चातुर्मासिक प्रतिक्रमण में २० लोगस्स, संवत्सरिक प्रतिक्रमण में ४० लोगस्स का कायोत्सर्ग करने की नई परम्परा की। शेष दैवसिक और रात्रिक प्रतिक्रमण के लिए चार लोगस्स के कायोत्सर्ग की परिपाटी ही जारी रखी गई।३५ दिगम्बर परम्परा में आचार्य अमितगिरि ने यह विधान किया-दैवसिक कायोत्सर्ग में १०८ और रात्रिक कायोत्सर्ग में ५४ उच्छ्वासों का ध्यान करना चाहिए और अन्य कायोत्सर्ग में २७ उच्छ्वासों का ध्यान करना चाहिए। २७ उच्छ्वासों में नमस्कार की नौ आवृत्तियां हो जाती है क्योंकि तीन उच्छ्वासों में नमस्कार महामंत्र पर कायोत्सर्ग किया जाता है। __ णमो अरहंताणं, णमो सिद्धाणं एक उच्छ्वास में णमो आयरियाणं, णमो उवज्झायाणं दूसरे उच्छ्वास में तथा णमो लोए सब साहूणं तीसरे उच्छ्वास मेंइस प्रकार तीन उच्छ्वासों में एक नमस्कार महामंत्र का कायोत्सर्ग पूर्ण होता है। आचार्य अमितगिरि का अभिमत है कि श्रमण को दिन व रात में कुल २८ बार कायोत्सर्ग करना चाहिए।३६ स्वाध्याय काल में १२ बार, वंदनकाल में ६ बार, प्रतिक्रमण काल में ८ बार, योग भक्ति काल में २ बार-इस प्रकार कुल २८ बार कायोत्सर्ग का विधान है। आचार्य अपराजित का मंतव्य है कि पंच महाव्रत संबंधी अतिक्रमण होने पर १०८ उच्छ्वासों का कायोत्सर्ग करना चाहिए। कायोत्सर्ग करते समय मन की चंचलता या उच्छ्वासों की संख्या की परिगणना में संदेह समुत्पन्न हो जाये तो आठ उच्छ्वास का ओर अधिक कायोत्सर्ग करना चाहिए।३७ कुछ अन्य परम्पराओं में विविध क्रियाओं में कायोत्सर्ग का निम्न रूप से प्रमाण उपलब्ध होता है• कुस्वप्न, दुःस्वप्न हेतु जो कायोत्सर्ग किया जाता है वह सागरवरगंभीरा तक होता है। • प्रतिक्रमण आदि में प्रायश्चित के रूप में चंदेसु निम्मलयरा तक कायोत्सर्ग होता है। • आराधना तथा शांति के निमित्त सम्पूर्ण लोगस्स सिद्धा सिद्धिं मम दिसंत तक का कायोत्सर्ग होता है। दैवसियं राइयं प्रतिक्रमण में तप चिंतामणि के कायोत्सर्ग में मुख्य रूप से चिंतन करना, यह न हो सके तो १६ नवकार गिने जाते हैं। दैवसिक प्रतिक्रमण में देवसिय पायच्छित का काउसग्ग चंदेसु निम्मलयरा तक तथा दुक्खक्खओं कम्मक्खओं का कायोत्सर्ग सम्पूर्ण करना होता है। लोगस्स और कायोत्सर्ग / ८३
SR No.032419
Book TitleLogassa Ek Sadhna Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyayashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2012
Total Pages190
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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