SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 221
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ और उसका सूर्य नाभिक है। यही सूर्य परमाणु को ऊर्जा प्रदान कर सक्रिय बनाता है। शरीर का यह प्रकाश तत्त्व जीवन की सारी गतिविधियों का संचालक है जिसके नष्ट होते ही आदमी मृत्यु को प्राप्त होता है। - थियोसोफिट्स ने इन शरीरों को भिन्न-भिन्न संज्ञाएँ दी हैं उन्होंने स्थूल शरीर को Physical body, सूक्ष्म शरीर को Etheric body और अतिसूक्ष्म शरीर को Astral body कहा है। .. परमहंस स्वामी योगानंद लिखते हैं कि भगवान ने मानव आत्मा को क्रमशः तीन देहों में अवेष्टित किया है१. मनोमय-कोष -कारण शरीर २. सूक्ष्म प्राणमय-कोष - यह मनुष्य के मानसिक एवं भावनात्मक प्रवृत्ति की लीला भूमि है। ३. स्थूल अन्नमय-कोष - भौतिक शरीर प्राणमय पुरुष अनुभूति चेतना द्वारा काम करता है और उसका शरीर प्राण तत्त्वों से निर्मित होता है। कारण शरीर पुरुष विचारों के आनंदमय प्रदेश में रहता तैजस और कार्मण शरीर अत्यन्त सूक्ष्म शरीर है अतःसारे लोक की कोई वस्तु उनके प्रदेश को रोक नहीं सकती। सूक्ष्म वस्तु बिना रूकावट के सर्वत्र प्रवेश कर सकती है जैसे अति कठोर लोह पिण्ड में अग्नि। जैसे सौर चूल्हे की प्लेट ऊर्जा ग्रहण करती है और भोजन तैयार हो जाता है वैसे ही औदारिक शरीर के माध्यम से ऊर्जा तैजस् शरीर पर संग्रहित होती है तो उससे कर्म शरीर प्रभावित होता है परिणाम स्वरूप पूर्व बद्ध कर्म निर्जरित होने लगते हैं। निस्संदेह कर्म शरीर सर्वाधिक शक्तिशाली शरीर है। यह अन्य सभी शरीरों का मूलभूत हेतु है। इसके होने पर अन्य शरीर होते हैं और न होने पर कोई शरीर नहीं होता। स्थूल शरीर का सीधा संपर्क तैजस शरीर से और तैजस शरीर का सीधा संपर्क कर्म-शरीर से है। कर्म शरीर से सीधा संपर्क चेतना का है और यह कर्म शरीर ही चैतन्य पर आवरण डालता है। कर्म शरीर स्थूल शरीर के द्वारा आकर्षित बाह्य जगत् के प्रभावों को ग्रहण करता है और चैतन्य के प्रभावों को बाह्य जगत् तक पहुंचाता है। सुख-दुःख का अनुभव कर्म शरीर से होता है। घटना स्थूल शरीर में घटित होती है और उसका संवेदन कर्म शरीर में होता है। रोग भी पहले कर्म शरीर में उत्पन्न होकर फिर स्थूल शरीर में व्यक्त होता है। वासना भी पहले कर्म शरीर में उत्पन्न होकर फिर स्थूल शरीर में व्यक्त होती है। कर्म शरीर लोगस्स : रोगोपशमन की एक प्रक्रिया / १६५
SR No.032418
Book TitleLogassa Ek Sadhna Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyayashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2012
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy