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________________ और स्थूल शरीर - दोनों का संबंध हमारी विभिन्न मानवीय अवस्थाओं का निर्माण करते हैं। यह हमारी भूल है कि हम समस्या और समाधान को स्थूल शरीर में खोजते हैं, जबकि दोनों का मूल कर्म शरीर में होता है। कर्म शरीर हमारे चिंतन, भावना, संकल्प और प्रवृत्ति से प्रकंपित होता है । प्रकंपन काल में वह नए परमाणुओं को ग्रहण (वंध) करता है और पूर्व ग्रहित परमाणुओं का परित्याग (निर्जरा) करता है । इसी क्रम में लोगस्स अथवा इसके एक-दो पद्यों का ध्यान, जप, कायोत्सर्ग, स्वाध्याय, स्तुति, चैतन्य - केन्द्र - प्रेक्षा आदि अनेक दिशाओं में अभ्यास कर कर्मों द्वारा निर्मित कार्मण शरीर को प्रकंपित व प्रभावित किया जा सकता है। कार्मण शरीर को प्रकंपित करने के अनेक मार्ग हैं उनमें से एक मार्ग है 'अर्हत्' का जप या ध्यान । आचार्यश्री महाप्रज्ञजी ने " संभव है समाधान" में लिखा है - किसी व्यक्ति ने अर्हत् पर तीव्रता से ध्यान किया, वह स्वयं अर्हतमय बन गया। इस अवस्था में कभी-कभी इतनी तीव्र अनुभूति होती है कि ग्रंथि का भेद हो जाता है अर्थात् सम्यक्त्व की उपलब्धि हो जाती है । " सिद्धान्ततः इस कार्मण शरीर की रचना तब तक ही होती है जब तक आत्मा कर्मों से बंधी है। कर्म बंध आत्मा से ही कर्म पुद्गल संबंध जोड़ते हैं और आत्मा से चिपके हुए कर्म पुद्गल अच्छे या बुरे चाहे इस जन्म के हों चाहे पिछले जन्मों के हों जीव के साथ चलते हैं और परिपक्व होने पर उदय में आते हैं । साधना करते-करते जब आत्मा कर्मों से मुक्त हो जाती है तो फिर कोई भी पुद्गल उस शुद्ध चैतन्यमय आत्मा से न तो संबंध जोड़ सकते हैं और न ही आवरण डाल सकते हैं। आरोग्ग बोहि लाभं समाहिवरमुत्तमं दिंतु - एक रहस्य लोगस्स के एक-एक पद्य, एक-एक पंक्ति की गहराई में अवगाहन करने पर नये-नये रहस्य हस्तगत होते रहते हैं । “आरोग्ग बोहि लाभं समाहिवर मुत्तमं दिंतु " इस एक पंक्ति के रहस्यों का सूक्ष्मता से अन्वेषण करने पर ज्ञात हुआ कि इस पंक्ति का संबंध अष्ट- कर्मों से संपृक्त है । उपरोक्त पंक्ति को अष्ट-कर्मों पर विवर्णित करने से पूर्व आत्मा के गुण, आत्मा को आवृत्त करने वाले कर्म, उनके प्रकार और प्रभाव को निम्न रेखाचित्र के माध्यम से समझने की अपेक्षा है क्योंकि इनको समझने के पश्चात् ही उस रहस्य को सुगमतापूर्वक जाना जा सकता है और कार्मण शरीर को प्रकंपित भी किया जा सकता है। १६६ : लोगस्स- एक सा
SR No.032418
Book TitleLogassa Ek Sadhna Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyayashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2012
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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