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________________ कैसे करता है? बंध के कितने प्रकार हैं? कर्म कौन बांधता है? कर्मों का उदय किस प्रकार होता है । क्या कर्म पूर्णतया निरंकुश है? क्या मनुष्य अपने पुरुषार्थ द्वारा अपने कर्म बंधनों को तोड़कर अथवा उनका संक्रमण कर अपना भाग्य बदल सकता है ? क्या हमारे जीवन में जो कुछ घटित होता है वह सब कुछ पूर्व कर्मों काही फल है या उस पर वर्तमान के व्यवहार एवं आचरण का भी प्रभाव पड़ता है - इत्यादि । कैसे हो कार्मण शरीर प्रकंपित ? कार्मण शरीर के प्रकंपन की प्रक्रिया से पूर्व कार्मण और तैजस- इन दो शरीरों को समझना आवश्यक है । क्योंकि द्रव्य और भाव- इन दोनों प्रकार के आरोग्य का संबंध इन दोनों शरीरों से ही संपृक्त है । तैजस् शरीर - जो शरीर आहार आदि को पचाने में समर्थ है और तेजोमय है, वह तैजस् शरीर है। यह शरीर विद्युत परमाणुओं से व कर्म शरीर, वासना, संस्कार और संवेदन के सूक्ष्मतम परमाणुओं से निर्मित होता है । तैजस शरीर, कर्म शरीर और स्थूल शरीर के बीच एक सेतु का कार्य करता है । 1 कार्मण शरीर-कर्म जगत् का संबंध भौतिक-स्थूल शरीर से न होकर उस सूक्ष्म शरीर से है जो दृश्य शरीर के भीतर है । कर्ममय शरीर जो अतीव सूक्ष्म है ज्ञानावरणीय आदि आठ कर्मों के पुद्गल समूह से जो शरीर बनता है, वह कार्मण शरीर है । शरीर विज्ञान के अनुसार हमारे भौतिक शरीर में एक वर्ग इंच में स्थित ग्यारह लाख से अधिक कोशिकाएँ होती हैं किंतु यदि सूक्ष्म शरीर में स्थित कर्म-जगत् की कोशिकाओं का लेखा-जोखा किया जाए तो मालूम होगा कि एक वर्ग इंच जगह में अरबों-खरबों कोशिकाओं का अस्तित्व है । ये कर्म पुद्गल चार स्पर्श वाले एवं अनंत स्पर्शी होते हैं। वे केवल अतीन्द्रिय शक्तियों के द्वारा ही देखे जा सकते हैं। बाह्य उपकरणों से वे नहीं देखे जा सकते। हमारा शरीर भी असंख्य कोशिकाओं से बना है । प्रत्येक कोशिका के बीच नाभिक होता है । इन नाभिकों में जन्म जन्मान्तर के संचित ज्ञान व संस्कार के गुण सूत्र ग्रंथियों के रूप में स्थित हैं। हर नाभिक में स्थित संस्कार सूत्र की लंबाई वैज्ञानिकों ने पांच फुट आंकी है। इस प्रकार शरीर के लगभग ६०० खरब कोशिकाओं में स्थित संस्कार सूत्र की कुल लंबाई तीन हजार अरब फीट हो सकती है। यह लंबाई सारे विश्व को अपने में समेटने में समर्थ है। जिसके कारण इसके विश्वव्यापी होने का अनुमान लगाया जा सकता है। इसी में जीव स्थित है । प्रत्येक परमाणु एक सौर मंडल के सदृश है १६४ / लोगस्स - एक साधना - १
SR No.032418
Book TitleLogassa Ek Sadhna Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyayashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2012
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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