SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 179
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सीमित और सीमातीत ऐसी सभी वस्तुओं को जानते-देखते हैं । उनके ज्ञान-दर्शन पर किसी प्रकार का आवरण नहीं होता । २६ केवलज्ञानी के जानने के लिए किसी दूसरे हेतु की आवश्यकता नहीं होती । स्वयं बिना किसी बाह्य हेतु के ही जानते देखते हैं । २७ गांगेय अनगार भगवान महावीर की परीक्षा हेतु आए थे। जब उन्हें विश्वास हो गया कि भगवान महावीर केवलज्ञानी हैं तो भी उन्होंने भगवान से पूछा - "ये सब बातें आप कैसे जानते हैं? आपने कहीं सुनी हैं ? सुनकर जानते हैं या बिना सुने ही जानते हैं ? " | भगवान ने / कहा - " हे गांगेय ! मैं स्वयं जानता हूँ। मैं किसी दूसरे की सहायता से नहीं / जानता । मैं बिना सुने ही यह सब जानता हूँ ।" तब गांगेय अनगार ने पूछा - " आप सब बिना सुने कैसे जानते हैं?" गांगेय ! केवलज्ञानी अरिहंत समस्त लोक की परिमित और अपरिमित ऐसी सभी ज्ञेय बातें जानते-देखते हैं । गांगेय अनगार को संतोष हुआ उन्होंने शिष्यत्व स्वीकार कर लिया । २८‍ केवलज्ञानी अधोलोक में सातो नरक भूमियों को उर्ध्वलोक में सिद्धशिला तक और समस्त लोक तथा लोक के एक परमाणु से लेकर अनंत प्रदेशी स्कन्ध तक को अर्थात् समस्त पदार्थों को जानते देखते हैं । और इसी प्रकार सम्पूर्ण अलोक को भी जानते-देखते हैं। आचार्य कुन्दकुन्द ने निश्चय और व्यवहार के आधार पर केवलज्ञान की परिभाषा की है जाणादि पस्सदि सव्वं ववहारणएणं केवली भगवं । केवल पाणी जागादि पस्सदि णियमेण अप्पाणं ॥ वृहत्कल्प भाष्य में केवलज्ञान के पांच लक्षण बतलाये हैं१. असहाय इन्द्रिय मन निरपेक्ष । २. एक ३. अनिवरित व्यापार ४. अनंत ज्ञान के सभी प्रकारों से विलक्षण । अविरहित उपयोग वाला । अनंत ज्ञेय का साक्षात्कार करने वाला । विकल्प अथवा विभाग रहित । ५. अविकल्पिता आचार्य जिनभइगणी ने केवल शब्द के पांच अर्थ किये हैं जिनकी आचार्य हरिभद्र एवं आचार्य मल्लधारी ने इस प्रकार व्याख्या की है३२ १. एक - केवलज्ञान मति आदि क्षायोपशमिक ज्ञानों से निरपेक्ष है, अतः वह एक है। - - लोगस्स एक धर्मचक्र - २ / १५३
SR No.032418
Book TitleLogassa Ek Sadhna Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyayashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2012
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy