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________________ है । २. शुद्ध - केवलज्ञान को आच्छादित करने वाली मलिनता से सर्वथा मुक्त होने के कारण केवलज्ञान सर्वथा निर्मल अर्थात् शुद्ध ३. सकल - आचार्य हरिभद्र के अनुसार केवलज्ञान प्रथम समय में ही सम्पूर्ण उत्पन्न हो जाता है अतः वह सम्पूर्ण अर्थात् सकल है। आचार्य मल्लधारी के अनुसार संपूर्ण ज्ञेय पदार्थों को ग्रहण करने के कारण केवलज्ञान को सकल कहा गया है । ५. अनंत - केवलज्ञान अतीत, प्रत्युत्पन्न एवं अनागत कालीन अनंत ज्ञेयों को प्रकाशित करने के कारण अनंत है। वह अप्रतिपाती है अतः अन्त न होने से वह अनंत है । मल्लधारी हेमचन्द्र ने काल की प्रधानता से तथा हरिभद्र सूरि ने ज्ञेय द्रव्य की अपेक्षा से केवलज्ञान की अनंतता का प्रतिपादन किया है । ४. असाधारण - केवलज्ञान के समान कोई दूसरा ज्ञान नहीं है, अतः वह असाधारण है। केवलज्ञान - केवलदर्शन के विचलित न होने के कारण १. यथार्थ वस्तु दर्शन २. मोहनीय कर्म की क्षीणता ३. भय, विस्मय और लोभ का अभाव ४. अति गंभीरता निष्कर्षतः कहा जाता है जो सभी द्रव्यों, द्रव्यों के परिणामों और भावों की विज्ञप्ति का कारण है, अनंत, शाश्वत और अप्रतिपाती है, एक ही प्रकार का है, वह केवलज्ञान है । ३४ यह वास्तव में आत्मा की ही वस्तु है। प्रत्येक आत्मा को उसे प्राप्त करने का अधिकार है। किसी अमुक या विशिष्ट व्यक्ति का ही इस पर एकाधिकार नहीं है। जो आत्मा सम्यक् पुरुषार्थ के द्वारा आवरणों को हटाता जाता है वह अंत में केवलज्ञान - केवलदर्शन प्राप्त कर सर्वज्ञ, सर्वदर्शी बन जाता है। यद्यपि सर्वज्ञता आत्मा की ही वस्तु हैं तथापि अलभ्य है । इस अपनी ही वस्तु की प्राप्ति सर्वसुलभ नहीं है। इसकी प्राप्ति मनुष्येत्तर प्राणियों को हो ही नहीं सकती और मनुष्यों में भी सभी को नहीं हो सकती । किसी समय किसी महान आत्मा को ही होती है। जिस प्रकार हिमालय पर्वत पर चढ़ना सबके लिए शक्य नहीं है। श्री तेनसिंह और मिस्टर हिलैरी न्यूजीलैण्ड निवासी ही सफल हुए। इसी प्रकार ज्ञान के इस सर्वोच्च शिखर पर पहुँचना हर किसी के लिए आसान नहीं है। प्रत्येक तीर्थंकर के शासन में केवलज्ञानी साधु साध्वियां होते हैं । * तीर्थंकर १५४ / लोगस्स - एक साधना - १
SR No.032418
Book TitleLogassa Ek Sadhna Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyayashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2012
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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