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________________ मेरुपर्वत है। मेरुपर्वत के ठीक मध्य गोस्तन आकार के आठ रूचक प्रदेश हैं । वहाँ से नव सौ योजन ऊपर एवं नव सौ योजन नीचे ऐसे अठारह सौ योजन का मोटा एक रज्जू असंख्य योजन का लम्बा चौड़ा मध्य लोक है । जिसमें जम्बु आदि असंख्य द्वीप और लवण आदि असंख्य समुद्र हैं । व्यन्तर देवों के आवास एवं ज्योतिष देव भी मध्य लोक में हैं । अढ़ाई द्वीप में मानव निवास हैं । इसमें जघन्य २० और उत्कृष्ट १७० तीर्थंकर, जघन्य दो करोड़ और उत्कृष्ट नव करोड़ अर्हत् (केवल ज्ञानी) तथा जघन्य दो हज़ार करोड़ और उत्कृष्ट नव हजार करोड़ साधु विराजमान रहते हैं । 1 लोक सात रज्जू से कुछ अधिक हैं। प्रथम नरक के ऊपर लोक के बीच में स्थित मेरु पर्वत जमीन में एक हजार योजन नीचे होने के कारण अधोलोक का स्पर्श करता है । महाविदेह क्षेत्र की दो विजय समभूमि से एक हजार योजन नीचे जाने से मनुष्य व तिर्यञ्च भी अधोलोक में हैं। सात नरक भूमियां अधोलोक में हैं जिनके ८४ लाख नरकावास हैं । 1 इस प्रकार द्रव्य लोक एक ओर सान्त ( अन्त सहित) है, क्षेत्र- लोक असंख्य कोटाकोटि योजन का है- अतः यह भी सान्त है । काल- लोक ध्रुव, नियत, शाश्वत, अक्षत, अव्यय, नित्य और अनंत है। उसका कभी अन्त होने वाला नहीं है। भाव - लोक अनंत अनंत जीव - अजीव द्रव्यों से भरा है अतः यह भी अनादि अनंत है । १६ मेरुदण्ड और मेरुपर्वत: लोक के संदर्भ में लोक के दो प्रकार हैं - १. २. द्रव्य लोक भाव लोक जिस क्षेत्र में मनुष्य, पशु, पक्षी, पृथ्वी, पानी आदि छह द्रव्यों का निवास है वह द्रव्य लोक और कषाय को भाव लोक कहते हैं । द्रव्य लोक की क्रियाओं में मेरुपर्वत का और भाव लोक की क्रियाओं में मेरुदण्ड का विशिष्ट महत्त्व है। दोनों का तुलनात्मक अध्ययन साधना के क्षेत्र में एक नई दृष्टि देता है । लोक के चित्र में नाभि - स्थल में मेरुपर्वत बताया है इसलिए इसका अपर नाम लोक नाभि भी है । उसके चारों तरफ सूर्य चन्द्रमा प्रदक्षिणा बद्ध रहा करते हैं। शास्त्रकारों ने मेरु को मल्ल स्तंभ जैसा बताया है । मेरुदण्ड भी मनुष्य के शरीर के मध्य में स्तंभ सदृश होता है। उसके आस-पास सूर्य चन्द्र नाड़ियां चलती हैं । जम्बूद्वीप, घातकी खण्ड तथा अर्द्धपुष्कर द्वीप * १३४ / लोगस्स - एक साधना - १
SR No.032418
Book TitleLogassa Ek Sadhna Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyayashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2012
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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