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________________ क्षेत्र लोक तीन भागों में विभक्त हैं।३– १. उर्ध्व लोक २. मध्य लोक ३. अधोलोक उर्ध्व लोक के ऊपर सिद्धशिला है। उत्तराध्ययन और औपपातिक में सिद्धों के संबंध में चार प्रश्न प्रतिपादित हैं। वे भी लोक के स्वरूप को प्रतिष्ठित करने वाले ही हैं।१४ १. सिद्ध कहाँ जाकर रूके हैं? २. सिद्ध कहाँ अवस्थित हैं? ३. सिद्ध कहाँ शरीर का त्याग करते हैं? ४. सिद्ध किस जगह सिद्ध होते हैं? उपरोक्त प्रश्नों का समाधान निम्न रूप में आगम वर्णित है अलोए पडिहया सिद्धा, लोयग्गे य पइट्ठिया। इहं बोदि चइत्ताणं, तत्त्थ गंतूण सिज्झई ॥५ १. सिद्ध अलोक से प्रतिहत होते हैं अर्थात् अलोक से लगकर रूके हैं। २. सिद्ध लोक के अग्र भाग में अवस्थित है। ३. सिद्ध मनुष्य लोक में शरीर का त्याग करते हैं। ४. सिद्ध लोक के अग्रभाग में जाकर सिद्ध होते हैं। घर के मध्य भाग में जैसे स्तंभ होता है उसी प्रकार लोक के मध्य में एक रज्जू चौड़ी और चौदह रज्जू" लम्बी त्रस नाड़ी है। त्रस नाड़ी में त्रस, स्थावर जीव रहते हैं शेष समूचा लोक स्थावर जीवों से खचाखच भरा है। उर्ध्व लोक सात रज्जू से कुछ कम है। इसमें १२ देवलोक, ३ किल्विषी देव, ६ लोकान्तिक देव, ६ ग्रैवेयक देव और ५ अनुत्तर विमान-इन सबके ८४ लाख, ६७ हजार, २३ विमान हैं एवं उसके ऊपर सिद्धशिला है। मध्यलोक जहाँ हम रहते हैं वह रत्नप्रभा पृथ्वी की छत है। उसके मध्य में *1. एक रज्जू क्षेत्र असंख्य कोड़ा कोड़ योजन का होता है। भगवती शत्तक 11 उद्देशा 10 में इसकी एक दृष्टान्त से समझाया है। एक हजार भार का गोला कोई इन्द्र तथा देव उर्ध्व लोक से नीचे जोर से फेंके और वह छह महिने, छह दिन, छह प्रहर, छह घड़ी, छह पल में जितनी दूर जाए उतने क्षेत्र को एक रज्जू कहा जाता है। योजन की अपेक्षा सम्पूर्ण लोक असंख्य योजन का है। 2. वैज्ञानिक भी इस लोक को लम्बा-चौड़ा मानते हैं। प्रसिद्ध वैज्ञानिक आइन्स्टीन का कहना है कि प्रकाश की किरणें एक सैकण्ड में एक लाख छियांसी हजार मील चलती है। यदि वे समूचे लोक की परिक्रमा करें तो उन्हें बारह करोड वर्ष लग जायेंगे। इतना विशाल है यह लोक। लोगस्स एक धर्मचक्र-१ / १३३
SR No.032418
Book TitleLogassa Ek Sadhna Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyayashashreeji
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year2012
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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