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________________ भगवती सूत्र ५. स्यात् आत्मा है, ओर नो आत्मा हैं । ६. स्यात् आत्मा हैं, और नो आत्मा है । ७. स्यात् आत्मा है और अवक्तव्य है-आत्मा और नो- आत्मा- दोनों को एक साथ कहना शक्य नहीं है। श. १२ : उ. १० : सू. २२०, २२१ ८. स्यात् आत्मा है और अवक्तव्य हैं - आत्मा हैं और नो आत्मा हैं दोनों को एक साथ कहना शक्य नहीं है । ९. स्यात् आत्मा हैं और अवक्तव्य है-आत्मा और नो- आत्मा - दोनों को एक साथ कहना शक्य नहीं है। १०. स्यात् नो - आत्मा है और अवक्तव्य है-आत्मा और नो-आत्मा- दोनों को एक साथ कहना शक्य नहीं है । ११. स्यात् नो आत्मा है और अवक्तव्य हैं-आत्मा हैं और नो आत्मा हैं इन दोनों को एक साथ कहना शक्य नहीं है । १२. स्यात् नो- आत्मा हैं और अवक्तव्य है-आत्मा और नो आत्मा - दोनों को एक साथ कहना शक्य नहीं है । १३. स्यात् आत्मा है, नो आत्मा है और अवक्तव्य है-आत्मा और नो आत्मा- दोनों को एक साथ कहना शक्य नहीं है। २२१. भंते ! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है - त्रिप्रदेशिक स्कंध स्यात् आत्मा है इस प्रकार उच्चारितव्य है यावत् स्यात् आत्मा है, नो आत्मा है और अवक्तव्य है- आत्मा और नो आत्मा- दोनों को एक साथ कहना शक्य नहीं है ? गौतम ! १. स्व - पर्याय की अपेक्षा आत्मा है। २. पर - पर्याय की अपेक्षा आत्मा नहीं है । ३. दोनों की अपेक्षा अवक्तव्य है-आत्मा और नो आत्मा- दोनों को एक साथ कहना शक्य नहीं है। ४. त्रिप्रदेशिक स्कंध का देश सद्भाव-पर्याय के रूप में आदिष्ट है, उसका देश असद्भाव- पर्याय के रूप में आदिष्ट है, इसलिए त्रि-प्रदेशी स्कंध आत्मा भी है, नो आत्मा भी है। ५. त्रिप्रदेशिक स्कंध के देश सद्भाव-पर्याय के रूप में आदिष्ट हैं, उसके देश असद्भाव- पर्याय के रूप में आदिष्ट हैं, इसलिए त्रिप्रदेशी स्कंध आत्मा भी है, नो आत्मा भी हैं । ६. त्रिप्रदेशिक स्कंध के देश सद्भाव-पर्याय के रूप में आदिष्ट हैं, उसका देश असद्भाव- पर्याय के रूप में आदिष्ट है, इसलिए त्रिप्रदेशिक स्कंध आत्मा भी है, नो आत्मा भी है । ७. त्रिप्रदेशिक स्कंध का देश सद्भाव पर्याय के रूप में आदिष्ट है, उसका देश तदुभय- पर्याय के रूप में आदिष्ट है, इसलिए त्रिप्रदेशिक स्कंध आत्मा है और अवक्तव्य है - आत्मा और नो-आत्मा- -दोनों को एक साथ कहना शक्य नहीं है । ४८५
SR No.032417
Book TitleBhagwati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages590
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size15 MB
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