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________________ भगवती सूत्र श. १२ : उ. १० : सू. २१७-२२० २१७. भंते! परमाणु- पुद्गल आत्मा है ? परमाणु - पुद्गल से भिन्न कोई आत्मा है ? जैसे सौधर्म - कल्प की वक्तव्यता, वैसे परमाणु- पुद्गल की वक्तव्यता । २१८. भंते! द्विप्रदेशिक स्कंध आत्मा है ? द्विप्रदेशिक स्कंध से भिन्न कोई आत्मा है ? गौतम ! द्विप्रदेशिक स्कंध १. स्यात् आत्मा है। २. स्यात् नो-अ ३. स्यात् अवक्तव्य है- आत्मा और नो-अ ४. स्यात् आत्मा और नो आत्मा है । ५. स्यात् आत्मा और अवक्तव्य है- आत्मा और नो आत्मा दोनों को एक साथ कहना शक्य नहीं है। -आत्मा है। -आत्मा दोनों को एक साथ कहना शक्य नहीं है। ६. स्यात् नो- आत्मा और अवक्तव्य है-आत्मा और नो आत्मा दोनों को एक साथ कहना शक्य नहीं है। २१९. भंते ! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है-इसी प्रकार पूर्ववत् यावत् नो आत्मा और अवक्तव्य - आत्मा और नो आत्मा दोनों को एक साथ कहना शक्य नहीं है ? गौतम ! १. स्व - पर्याय की अपेक्षा आत्मा है। २. पर - पर्याय की अपेक्षा से नो-आत्मा है । ३. दोनों की अपेक्षा द्विप्रदेशी स्कंध अवक्तव्य है-आत्मा और नो आत्मा- दोनों को एक साथ कहना शक्य नहीं है। ४. द्विप्रदेशी स्कंध का देश सद्भाव-पर्याय के रूप में आदिष्ट है, उसका देश असद्भाव- पर्याय के रूप में आदिष्ट है, इस प्रकार द्विप्रदेशी स्कंध आत्मा भी है, नो आत्मा भी है । ५. उसका देश सद्भाव - पर्याय के रूप में आदिष्ट है और उसका देश तदुभय-पर्याय के रूप में आदिष्ट है, इस प्रकार द्विप्रदेशी स्कंध आत्मा है और अवक्तव्य है-आत्मा और नोआत्मा दोनों को एक साथ कहना शक्य नहीं है । ६. उसका देश असद्भाव पर्याय के रूप में आदिष्ट है, उसका देश तदुभय-पर्याय के रूप में आदिष्ट है, इसलिए द्विप्रदेशी स्कंध नो-आत्मा और अवक्तव्य है- आत्मा और नो आत्मा दोनों को एक साथ कहना शक्य नहीं है । इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है । यावत् नो आत्मा है और अवक्तव्य है- आत्मा और नो - आत्मा दोनों को एक साथ कहना शक्य नहीं है । २२०. भंते ! त्रिप्रदेशिक स्कंध आत्मा है ? त्रिप्रदेशिक स्कंध से भिन्न कोई आत्मा है ? गौतम ! त्रिप्रदेशिक स्कंध १. स्यात् आत्मा है । २. स्यात् नो- आत्मा है । ३. स्यात् अवक्तव्य है- आत्मा और नो- आत्मा - दोनों को एक साथ कहना शक्य नहीं है। ४. स्यात् आत्मा है, और नो- आत्मा है। ४८४
SR No.032417
Book TitleBhagwati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages590
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size15 MB
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