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________________ भगवती सूत्र श. १२ : उ. १० : सू. २२१,२२२ ८. त्रिप्रदेशिक स्कंध का देश सद्भाव-पर्याय के रूप आदिष्ट है, उसके देश तदुभय-पर्याय के रूप में आदिष्ट हैं, इसलिए त्रिप्रदेशिक स्कंध आत्मा है और अवक्तव्य हैं - आत्मा और नो- आत्मा दोनों को एक साथ कहना शक्य नहीं है। ९. त्रिप्रदेशिक स्कंध के देश सद्भाव-पर्याय के रूप में आदिष्ट हैं, उसका देश तदुभय-पर्याय के रूप में आदिष्ट है, इसलिए त्रिप्रदेशिक स्कंध आत्मा है और अवक्तव्य है-आत्मा और नो - आत्मा - दोनों को एक साथ कहना शक्य नहीं है। १०. त्रिप्रदेशिक स्कंध का देश असद्भाव-पर्याय के रूप में आदिष्ट है, उसका देश तदुभय- पर्याय के रूप में आदिष्ट है, इसलिए त्रिप्रदेशिक स्कंध नो आत्मा है और अवक्तव्य है - आत्मा और नो आत्मा- दोनों को एक साथ कहना शक्य नहीं है । ११. त्रिप्रदेशिक स्कंध का देश असद्भाव पर्याय के रूप में आदिष्ट है, उसके देश तदुभय- पर्याय के रूप में आदिष्ट हैं, इसलिए त्रिप्रदेशिक स्कंध नो आत्मा है और अवक्तव्य हैं- आत्मा और नो आत्मा दोनों को एक साथ कहना शक्य नहीं है । १२. त्रिप्रदेशिक स्कंध के देश असद्भाव पर्याय के रूप में आदिष्ट हैं, उसका देश तदुभय- पर्याय के रूप में आदिष्ट है, इसलिए त्रिप्रदेशिक स्कंध नो आत्मा हैं और अवक्तव्य है - आत्मा और नो- आत्मा - दोनों को एक साथ कहना शक्य नहीं है । १३. त्रिप्रदेशिक स्कंध का देश सद्भाव - पर्याय के रूप में आदिष्ट है, उसका देश असद्भाव - पर्याय के रूप में आदिष्ट है, उसका देश तदुभय-पर्याय के रूप में आदिष्ट है, इसलिए त्रिप्रदेशिक स्कंध आत्मा है, नो आत्मा है और अवक्तव्य है- आत्मा और नो- आत्मा दोनों को एक साथ कहना शक्य नहीं है । गौतम ! इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है - त्रिप्रदेशिक स्कंध स्यात् आत्मा है पूर्ववत् यावत् (आत्मा) नो-आत्मा दोनों को एक साथ कहना शक्य नहीं है । २२२. भंते ! चतुष्प्रदेशिक स्कंध आत्मा है ? चतुष्प्रदेशिक स्कंध से भिन्न कोई आत्मा है ? गौतम ! चतुष्प्रदेशिक स्कंध - १. स्यात् आत्मा है। २. स्यात् नो - आत्मा है । ३. स्यात् अवक्तव्य है - आत्मा और नो आत्मा दोनों को एक साथ कहना शक्य नहीं है । ४-७. स्यात् आत्मा है और नो आत्मा है। ८-११. स्यात् आत्मा और अवक्तव्य है । १२-१५. स्यात् नो आत्मा है और अवक्तव्य है । १६. स्यात् आत्मा है, नो आत्मा है और अवक्तव्य है - आत्मा और नो आत्मा दोनों को एक साथ कहना शक्य नहीं है । १७. स्यात् आत्मा है, नो आत्मा है और अवक्तव्य है-आत्मा और नो आत्मा - दोनों को एक साथ कहना शक्य नहीं है। ४८६
SR No.032417
Book TitleBhagwati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages590
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size15 MB
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