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________________ पृष्ठ | सूत्र पंक्ति अशुद्ध लब्धि की वक्तव्यता (भ. २४/ २११-२१९) । भव की अपेक्षा से सर्वत्र उत्कृष्ट ७ | वक्तव्य है। १ योम्य है? २ वक्तव्य है। पिशाच-वाणमन्तर-देवों योग्य हैं? वक्तव्य है। २८९ पूर्ववत् २९० १ | उत्पन्न होने योग्य है? जघन्यतः -जघन्यतः तीन पल्योपम की स्थिति वालों, स्थिति वालों परिमाण जघन्यतः अवगाहना जघन्यतः उत्पन्न लब्धि (भ. २४/१९७) कायसंवेध (भ. २४/२५५-२५७) उत्पन्न अनुबंध जघन्यतः -जीव जघन्य वक्तव्यता (भ. २४/२६८), | पूर्ववत् (भ. २४/२६९), गमक (भ. २४/२६६) यावत् ईशान-देव की लब्धि की उसी प्रकार वक्तव्यता। भव की अपेक्षा सर्वत्र उत्कर्षतः | ज्ञातव्य हैं। | योग्य है? ज्ञातव्य हैं। पिशाच वानमन्तर-देवों | योग्य है? | ज्ञातव्य हैं। उपपात पूर्ववत् उपपन्न होने योग्य है? ७६७ ७६४ | २९२| १ | वैमानिक देवों से उत्पन्न होते हैं? कल्पवासी-वैमानिक-देवों से पृष्ठ | सूत्र पंक्ति अशुद्ध ७५८ | २६४ ५ (कायसंवेध) जघन्यतः |७५९ / २६६२ में जघन्यतः तीन पल्योपम की स्थितिवाले, | ३ स्थिति वाले | परिमाण-जघन्यतः | अवगाहना-जघन्यतः उपपन्न ३ लब्धि ५ कायसंवेध | उपपन्न | अनुबंध-जघन्यतः १ -जीव में जघन्य २ वक्तव्यता, पूर्ववत् । (भ. २४/२६९) गमक की ५ है। (भ. २४/२६६) | १ | मनुष्य ५ | उपपद्यमान की भांति वक्तव्य है। (भ. २४/१९९) १ संज्ञी मनुष्य, २ (भ. २४/२०२,२०३) ४ ) कोटि ४.५ पृथक्त्व (दो से नौ) मास, ६ पृथक्त्व (दो १ | मनुष्य-पञ्चेन्द्रिय २ है। जैसे तीन गमकों अविकल रूप में परिमाण-उत्कृष्टतः १ मनुष्य-पञ्चेन्द्रिय २ है। वही प्रथम गमक की वैमानिक-देवों से उपपत्र होते हैं? (सौधर्म-कल्पवासि-वैमानिक-देवों ७६८ मनुष्यों ७६९ शेष २७८ पृष्ठ सूत्र पंक्ति अशुद्ध शुद्ध ७६६ | ३००७ | शेष अविकल रूप से वक्तव्य है शेष उसी प्रकार (भ. २४/२६१ - (भ. २४/२६१-२८२)। |२८२) निरवशेष (वक्तव्य है)। ७६६ | ३०३| ५ | वक्तव्य है। केवल इतना वक्तव्य है, इतना यावत् ईशान-देव तक (के रूप में यावत् (नागकुमार-देवों से लेकर) ईशान-देव की वक्तव्यता (ईशान | देव के देवों के मनुष्य के रूप में ,, | २० | बतलानी चाहिए। बतलाना चाहिए) , २३ | पञ्चम, गमक पञ्चम गमकों ३०४] १ आनत-देव मनुष्य आनत-देव जो मनुष्य ७६७ ३०५/१-२ | प्रकार सहसार-देवों की भांति प्रकार जैसे सहसार-देवों (भ. २४/ (भ. २४/३०३), |३०३) की वक्तव्यता है (वैसे ही | यहां वक्तव्य है), .. | ३०५/ २ | भांति (भ. २४/३०२) भांति वक्तव्यता (भ. २४/३०३), ७६७ | ३०५, ३ वक्तव्य है ज्ञातव्य हैं ही गमकों में वक्तव्य, ही गमक (वक्तव्य हैं), (इक्कीस सागरोपम) है, तीन | (इक्कीस सागरोपम) है, उससे तीन ७६८ हैं? अनुत्तरोपातिक हैं? (अथवा) अनुत्तरोपपातिक ४ | शेष (संहनन आदि वाले) अवशेष (संहनन आदि बोल) ७६९ | ३०८ ३०८६ के १४ | काल की अपेक्षा से काल की अपेक्षा७६९/३०८/१७ | कायसंवेध उपयोग लगाकर जानना | कायसंवेध यथोचित ज्ञातव्य हैं। चाहिए। वैजयन्त-अनुत्तरोपपातिक यावत् वैजयन्त-अनुत्तरोपपातिक- यावत् विजय-अनुतरोपपातिक-यावत् विजय-अनुत्तरोपपातिक- यावत | ३ | की भांति वक्तव्यता (भ. २४/ (भ. २४/३०८) की भांति ३०८) वक्तव्यता, | अवगाहना-जघन्यतः अवगाहना जघन्यतः अभिनिबोधिक आभिनिबोधिक | स्थिति-जघन्यतः स्थिति जघन्यतः ८ अपेक्षा--जघन्यतः अपेक्षा जघन्यतः | की अपेक्षा से जघन्यतः की अपेक्षा जघन्यतः ও ০ ११ | आठ आठों ওও ০ | होने योग्य है (भन्ते! होने योग्य है, (भन्ते! है)? | देव की देव (भ. २४/३१०) की | स्थिति-जघन्यतः स्थिति जघन्यतः अपेक्षा से वक्तव्यता, वक्तव्यता (भ. २४/३११), | वक्तव्यता, वक्तव्यता (भ. २४/३१२) | गमक गमक (तीसरा, छट्ठा, नवां) ३१३, ५ | नहीं है। नहीं हैं। हैं?.....इसी प्रकार हैं? इस प्रकार ३१५| ३ | अविकल रूप से वक्तव्य है। निरवशेष (वक्तव्य है)। उपपद्यमान (भ. २४/१९९) की भांति (वक्तव्य है)। संज्ञि-मनुष्य (भ. २४/२०३) )-कोटि पृथक्त्व (दो से नौ)-मास, पृथक्त्व (दो मनुष्य पञ्चेन्द्रिय है, जैसी तीनों गमकों में निरवशेष परिमाण उत्कर्षतः मनुष्य पञ्चेन्द्रिय है, वही प्रथम गमक (भ. २७३२७६) की अवगाहना जघन्यतः अनुबन्ध जघन्यतः पल्योपम, इतने ७६९ ७६४ | २९३ | ४ | उद्देशक के (भ. २४/२१८) उद्देशक (भ. २४/२१८) के ६ भव की अपेक्षा से भव की अपेक्षा | ज्ञातव्य है। ज्ञातव्य हैं। अवशेष अवगाहना अवगाहन अवगाहना अवगाहन नरक-गति नैरयिकों जैसे जैसे |-उद्देशक में वक्तव्य है यावत् |-उद्देशक (भ. २४/२३८) में (उक्त (भ. २४/२३८) है वैसे वक्तव्य है) यावत् ४ शेष | अवशेष उपपद्यमान की उपपद्यमान (भ. २४/२४०-२४२) की वक्तव्यता (भ.२४/२४०-२४२) वक्तव्यता, परिमाण-जघन्यतः | परिमाण जघन्यतः था) |-तिर्यग्योनिक जीवों तिर्यग्योनिक-जीवों के भेद से भेद | तेजस्कायिक और तेजस्कायिक- और | उत्पन्न होगा। उपपन्न होता है। परिमाण-जघन्यतः परिमाण जघन्यतः पूर्ववत् । यावत् पूर्ववत् (भ. २४/२४५) यावत् |अवगाहना-जघन्यतः अनुबन्ध-जघन्यतः पल्योपम-इतने ६ ७७° one ano अपेक्षा ७६२ २८२/ २ है। ., ३-४ गमक की भांति (भ. २४/२८०) गमक (भ. २४/२८०) की भांति ७६२ २८२ ४ काय की अपेक्षा काल की अपेक्षा | १ |होते हैं,? होते हैं? ७६२ , २ वाणमन्तर देवों वानमन्तर-देवों ७६३ | २८५/५-६ |में उपपद्यमान की भांति वक्तव्य है |में उपपद्यमान (भ. २४/२०७ (भ. २४/२०७-२१०) । इसी |२१०) की भांति (वक्तव्य है)। इसी प्रकार यावत् ईशान-देव की प्रकार (भ. २४/२११-२१९) । अविकल रूप से | होते हैं ? (पृच्छा) ५ की भांति वक्तव्य है (भ. २४/ | २४८-२८२) , | ६ | इनक ज्ञातव्य, निरवशेष होते हैं? (भ. २४/२४८-२८२) की भांति वक्तव्य हैं, इनके ज्ञातव्य है, |७६६/
SR No.032417
Book TitleBhagwati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages590
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size15 MB
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