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________________ पृष्ठ सूत्र पंक्ति ७५० २१४ ३ २१५ १ ७५० २१५ २ ७५० २१५ २ ७५० २१५ ३ ७५० २१५ ४ ७ ८ ७५० २१६ २ २१७३ " ७५० तीन, अज्ञान नियमतः तीन ।. स्थिति- जघन्यतः भी। (कायसंवेध) काल वक्तव्य है, ज्ञातव्य है । ? कल्पातीत होते हैं। २१८ शीर्षक (औधिक और औधिक) ***** " ७५१२१८ ३. " ७५१ २१८ ३. ७५१ २१८ | ६ ".. ७ १ २२१ | १. २ 33 २१९ ७५१ २२१ २२२ " २२४ । ७५१ २२४ " ४ " ७५२ २२८ | ७५२ | २२८ | ५. १. ७५१ २२४ ७५१ २२४ ३. २२६ १ १-२ २ ३. २ १ २ अशुद्ध २ होते हैं ? होने योग्य है ? असुरकुमार है, ज्ञान देव (भ. २४/२१५ ) वक्तव्य है। इतना करता है। इसी प्रकार शेष आठ गमक वक्तव्य है, अपेक्षा जाननी चाहिए। होने योग्य है ? (..... पृच्छा) होते हैं ? यावत् - (भ. २४/१६३-१६५) -जीवों के समान वक्तव्य है, ज्ञातव्य है । होते हैं ? उद्देशक के समान जानना में देवता होते हैं ? तेजस्कायिक जीवों की भांति वक्तव्यता कायसंवेध जानना होते हैं ? की भांति वनस्पतिकायिक जीव शुद्ध होते हैं०? होने योग्य है० ? असुरकुमारों है। (सम्यग्दृष्टि की अपेक्षा) तीन ज्ञान नियमतः अथवा (मिथ्या दृष्टि की अपेक्षा) तीन अज्ञान नियमतः । स्थिति जघन्यतः भी। काल वक्तव्य हैं, ज्ञातव्य हैं। ? (अथवा ) कल्पातीत होते हैं० ? (पहला गमक औधिक और ओधिक) देव के (प्रथम) गमक (भ. २४/ २१५) (वक्तव्य है, इतना करता है। (दूसरे से नर्वे गमक तक) इस प्रकार शेष आठों ही गमक वक्तव्या है, अपेक्षा को जानना चाहिए। होने योग्य है० ? होते हैं ० ? (भ. २४ / १६३-१६५) यावत्-जीवों के उद्देशक (भ. २४/१६७| २१९) के समान वक्तव्य है, ज्ञातव्य हैं। होते हैं ० ? उद्देशक (भ. २४ / १६७-२१९ ) सदृश को जानना देवों से होते हैं ० ? तेजस्कायिक- जीवों के उद्देशक (भ. २४/२२४) की भांति वक्तव्य कायसंवेध को जानना होते हैं ० ? (भ. २४/१६७-२१९ ) के सदृश प्रस्तुत उद्देशक वनस्पतिकायिक जीव पृष्ठ सूत्र पंक्ति ७५२ २२८ " ७५२ २३० ७५२ २३० ७५२ २३१ " " " ७५२ ७५२ " ७५३ ७५३ " ". " :::::: २३१ ७५४ ७५४ २४२ " ८ २३३| १ २३३ | १ २३३ २ ३ ३ ७५३ २३३ ४,६ ५, ७ २३३ ७ उद्देशक 33 17 २३५ १. २३५ १ २ -जीवों के उद्देशक ७५३ २३५ ३ कायसंवेध २३८ २, ४, ५ नैरयिक-जीवों ७५३ २४० २ ७५४ २४१ २ ७५.४ २४१ ८. २४२ १ ७५४ २४२ ४ रूप में) शरीर के दो प्रकार प्रज्ञप्त हैं, सागरोपम इतने स्थिति वाले में उत्पन्न पूर्वक्त् ३ केवल इतना विशेष ७ ******** २४३ ८ २४३ ८ १. ७५५ २४३ ४ ५ १२ ८ ९ १० ११ १ २ २ अशुद्ध ह) यावत् देवों से दव ६. में (प्रथम, द्वितीय, चतुर्थ और पंचम) (प्रथम, द्वितीय, चतुर्थ और पंचम) में भव) इसी प्रकार यावत् होते हैं ? प्रकार जैसे द्वीन्द्रिय जीवों जानना जाव ३ (भ. २४/१७०), ७ कायसंवेध जानना होते हैं ? यावत् (पण्णवणा, ६/८२-८६) (भ. २४ / १६३-१६५) यावत्१६७) बतलाई १६७ में बतलाई हे यावत् शुद्ध उसी प्रकार (भ. २४/१७०, १७३ १७६) (वक्तव्य है), कायसंवेध को जानना होते हैं ० ? भव)। इस प्रकार यावत् होते हैं ० ? प्रकार द्वीन्द्रिय-जीवों को जानना जीवों में कायसंवेध इस प्रकार वक्तव्य है- (कायसंवेध इस प्रकार वक्तव्य है)-जीव -जीवों कायसंवेध इस प्रकार(कायसंवेध इस प्रकार)-रात्रि-दिवस, -रात्रि दिवस । होते हैं ? होते हैं ० ? इसी प्रकार शेष सात गमक वक्तव्य हैं, नैरयिक उद्देशक की भांति में उत्पन्न होने वाले जीवों के। २४ उद्देशक (भ. २४/२३३) -जीवों का भी उद्देशक कायसंवेध को नैरयिकों रूप में उपपन्न) शरीर दो प्रकार के प्रज्ञप्त हैं, सागरोपम, इतने स्थिति वालों में उपपन्न पूर्ववत्, अवशेष पूर्ववत्, इतना विशेष इसी प्रकार नैरयिक उद्देशक में के समान शेष सातों ह। के तीन मध्यम गमकों तीन अन्तिम गमकों के तीन मध्यम गमक तीन अन्तिम गमक ज्ञातव्य है । नैरयिक, जो है ? गमक वैसे हैं (भ. २४ / १३९-२४१), केवल हैं, तीन ज्ञान अथवा तीन ज्ञातव्य है । नैरयिक जो है ०? गमक वक्तव्य गमक (भ. २४/२३९ - २४२) वैसे (सम्यग्दृष्टि की अपेक्षा) तीन ज्ञान नियमतः अथवा (मिथ्या दृष्टि की अपेक्षा) तीन पृष्ठ सूत्र पंक्ति ७५५ " " ७५५ " " ७५६ ७५६ 13 ७५५ ७५५ ७५६ २४५ ७५६ २४५ | 31 33 ७५७ " DE " २४३ ८ १० " " २४४ | २४४ | "3 २४४ | २४४ " ६ " ७५६ २४८ | ८ ७५६ २४९ | १ ७५६ २४९ २ ६ २४६ २४७ APER ७५७ २५५ " " ७५८ २५८ | "3 २५१ " "} ७५८ २५८ " २४७ | २ २४७ ८ २४८ | २५९ २ २ " " ७५८ २६० ३ ७ २ २५३ | २ " ९ २ ३ १ १ २६१ २६२ १ १ २ ७५८ २५९ ७५८ २६० ३ ५. ३ ३ " ५. ३ ३ ७ २, ३ ३, ४ अशुद्ध वक्तव्य है । ज्ञातव्य है । योग्य है ? गमक वक्तव्य हैं (भ. २४/२४३) गमक (भ. २४/२४३) (वक्तव्य है), ज्ञातव्य हैं। अपेक्षा) स्थिति- विशेष होते हैं ० ? ज्ञातव्य है । अपेक्षा से) स्थिति विशेष होते हैं ? यावत्- (भ. २४/१६४, १६५ ) पृथ्वीकायिक- जीव, जो लेकर तक करणीय है। होते हैं..... पृच्छा ? वक्तव्य है। वक्तव्य है १ ९ । पञ्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिक-जीवों हैं? असंज्ञी यावत् अविकल रूप से वक्तव्य है वक्तव्य हैं। ज्ञातव्य हैं। योग्य है० ? उपपद्यमान का मध्य गमकों में यावत् गमक की करणीय हैं। होते हैं ० ? वक्तव्य है। ज्ञातव्य हैं। पञ्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिक-जीवों हैं? (अथवा ) असंशि गया है। यावत्- (भ. २४/१९२) गया है (भ. २४/१९२) यावत् शेष अवशेष वक्तव्यता (भ. २४/२५०), कोटि-पूर्व पृथक्त्व (दो से नौ) - अधिक जैसी सातवें गमक की भांति वक्तव्यता केवल इतना अपेक्षा से स्थिति- जघन्यतः अविकल रूप से है, होते हैं ? होते हैं ? शुद्ध (भ. २४ / १६४, १६५) यावत्पृथ्वीकायिक जीव जो प्रारम्भ कर पर्यन्त ३२/३३) उपपद्यमान के मध्य गमकों में (भ. २४/१९४) यावत् गमक (भ. २४/२५०) की वक्तव्यता, पृथक्त्व (दो से नौ)-कोटि- पूर्वअधिक सातवें गमक की भांति वक्तव्यता (भ. २४/२५८), इतना अपेक्षा स्थिति जघन्यतः निरवशेष यावत् कालादेश (भ. २४/५२, ५३ (भ. २४/५२, ५३) यावत् कालादेश की (भ. २४/२५३) भांति वक्तव्य (भ. २४/२५३) की भांति (वक्तव्य (भ. २४/१९३-१९५) यावत् निरवशेष (वक्तव्य हैं) (भ. २४/ ह) । होते हैं ० ? होते हैं०? वाला २६३ १ वाले २६४ २३ गमक की भांति वक्तव्य (भ. २४/ गमक (भ. २४/५८-६२) की भांति (वक्तव्य है) ५८-६२),
SR No.032417
Book TitleBhagwati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages590
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size15 MB
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