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________________ पृष्ठ सूत्र पंक्ति ७७१ ३१७ | ७७१३१७ :: " " ७७२ ७७२ ७७२ ७७२ " ७७३ ७७३ ७७३ " " ७७१ ३१९ ६, ७ ७७१ ३१९ ९ १२ १३ १४ ७७२ ३२० १ २ " " " " "" वाणमन्तर-देव शेष पूर्ववत्। नागकुमार देव पूर्ववत् । नागकुमार काल की अपेक्षा से संज्ञी पञ्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिक( यौगलिक)) जीव है, जघन्यतः " ३१९ १ २ संज्ञी पञ्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिक ( यौगलिक)) जीव उत्कृष्ट काल है, जघन्यतः वाणमन्तर- देवों में उत्पन्न होता है। गमक ज्ञातव्य है । वाणमन्तर- देव में वक्तव्यता । अनुबंध- जघन्यतः वाणमन्तर- देव में उपपन्न होते हैं? वाणमन्तर- देव में " ३१८ " さよ " ७७२ ३२४ ३२० " ७७३ | ३२४ ३२४. ३ है? nwr aw ५ अवगाहना जघन्यतः ५. असंख्यात वर्ष आयुष्य वाले ३२० ९-१० व्यन्तर- देव के रूप में उत्पत्ति ३२० ११ ३२२ शीर्षक २ १ २ २ " २ ३२६ ३ ६. ६. अशुद्ध r र ३ ३२४ ७. ८ ३२४ ३२४ १३ में ) - इतने ३२५. २ -देव २ का ४ वक्तव्यता, देव वक्तव्यता, स्थिति-जघन्यतः अनुबंध जघन्यतः वानमन्तर- देवों में उपपत्र होता है० ? वानमन्तर-देवों में अवगाहना जघन्यतः असंख्यात वर्ष की आयुष्य वाले वानमन्तर देवों के रूप में उपपात (की नागकुमार- उद्देशक भांति (भ. २४ / वक्तव्यता) नागकुमार उद्देशक (भ. १५८, १५९) वक्तव्य है। २४/१५८, १५९) की भांति (वक्तव्य है)। ज्ञातव्य हैं। ज्योतिष्क देव में भन्ते! कितने बताया है) उद्देशक की भांति, शुद्ध वक्तव्य है। उपपात आदि उपपात आदि हैं ?.... भेद यावत् (भ. २४/१-३) हैं०? भेद (भ. २४/१-३) यावत् ( यौगलिक), जो ( यौगलिक) जो ज्योतिष्क देवों में भन्ते! वह कितने बताया है।) उद्देशक (भ. २४ / १२१) की भांति स्थिति जघन्यतः शेष पूर्ववत् केवल इतना ? (अथवा ) वानमन्तर - देवों शेष पूर्ववत् नागकुमार देव पूर्ववत् नागकुमार काल की अपेक्षा संज्ञी पञ्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिक (योगलिक )) - जीव है, वह जघन्यतः संज्ञी पञ्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिक ( यौगलिक)) जीव जो उत्कृष्ट काल है, वह जघन्यतः वानमन्तर- देवों में उपपन्न होता है। गमकों ज्ञातव्य हैं। वानमन्तर- देवों में वक्तव्यता (वक्तव्य है), स्थिति जघन्यतः शेष पूर्ववत्, इतना में), इतने देवों के वक्तव्यता (भ. २४/३२४), देवो वक्तव्यता (भ. २४/३२४), स्थिति जघन्यतः पृष्ठ सूत्र पंक्ति ७७३ ३२६ ३२८ ३२८ । " ७७३ " ७७४ ३२९ ७७४ " ७७४ ७७४ " " ७७५ " " 31 "3. " ७७५ " ३२९ ३२९ ५ ३३१ १ ७७४ ३३१ १-२ १ ७७४ ३३२ १, ३ ३३२ ३३२ ७७४ ७७४ | ३३२ " ४ ५ ७७४ ३३२ ७७४ ९ ३३३ २ ३३३ २ ३३३ २ ७७४ ३३३ ३ ७७४ SRA ३३० ३३० " " ३३० ३३५ ३३६ " ३३७ " ३३८, ३३९ ३३८ ३३८ ३३९ * २ " ३४० २ ३४० ५. १ २ ३ ५ २ ३ ४ 10 rs 259 १ २. ५. ७ १ २ 15 w my m ४ ५ ६ ३ शुद्ध अनुबन्ध भी काल की अपेक्षा ३२६), भाग इतने अवगाहना जघन्यतः भाग, इतने उत्कृष्ट काल स्थिति में उत्कृष्ट काल की स्थिति में गमक की भांति वक्तव्यता। (द्वितीय गमक (भ. २४/३२४-३२६) की भांति वक्तव्यता ( स्थिति-जघन्यतः ज्ञातव्य है । स्थिति जघन्यतः ज्ञातव्य हैं। उपपन्न होते हैं ० ? उपपन्न होते हैं ? जीवों की भांति (भ. २४/१३१- जीवों (भ. २४/१३१-१३३) की १३३) नौ भांति नौ हैं, है, केवल ज्ञातव्य है । पूर्ववत् । होते हैं पृच्छा ? यावत् (भ. २४ / १३४- १३५) । वाले ज्योतिष्क- देव में अशुद्ध अनुबन्ध भी काल की अपेक्षा ३२६) केवल अवगाहना जघन्यतः गमक हैं (भ. २४/३२४-३२९) है होते हैं ? दव उपपद्यमान की वक्तव्यता (भ. २४/१३९ १४२), ज्योतिष्क देव की होते हैं ? सौधर्म-देव में सौधर्म देव के रूप में होते हैं ?...... शेष स्थिति-जघन्यतः पल्योपम तिर्यग्योनिक ( यौगलिक)) दव पल्योपम स्थिति- जघन्यतः पल्योपम (भ. २४/३३९) वही वक्तव्यता, अवगाहना जघन्यतः ४ स्थिति २६. ज्ञातव्य हैं। पूर्ववत् (वक्तव्य हैं)। होते हैं ० ? (भ. २४ / १३४-१३५) यावत् वाला ज्योतिष्क देवों में गमक (भ. २४/३२४-३२९) है, है (भ. २४/३२४-३२९) होते हैं ० ? देवों उपपद्यमान (भ. २४ / १३९ - १४२ ) वक्तव्यता, ज्योतिष्क देवों की होते हैं ० ? सौधर्म-देवों में सौधर्म देव के रूप में होते हैं? अवशेष स्थिति जघन्यतः पल्योपम, तिर्यग्योनिक (यौगलिक)) देवों पल्योपम, स्थिति जघन्यतः पल्योपम, (भ. २४/३३९), वही वक्तव्यता, अवगाहना जघन्यतः स्थिति जघन्यतः पृष्ठ सूत्र पंक्ति ७७६ ३४० ७७६ ३४१ ७७६ ३४१ २ " ७७७ " " " ७७७ ३४६ " ७७७ " " " " ७७८ " " ⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀ " ७७७ ३५१ ७७७ ३५१ ७७८ ३५२ ७७८ ३५२ " ३४६ " " "" ३४९ ३५० " " ३५१ | " "" ३५३ ३५३ " ३५४ "} ⠀⠀⠀⠀⠀ 33 " " १ २ ३५५ ३ ५ ६ १ ३ ५. ६. ७ १ १ २ १ २ ३ ४ ९ १ १-२ पर्याप्त संज्ञी मनुष्य, जो होने योग्य है..... (पृच्छा) सहस्रार -देवलोक ३५४ २-३ मनुष्यों की भांति (वक्तव्यता) (भ. २४ / ३५२) केवल इतना विशेष है-सहनन-उपपन्न तीन । पृथक्त्व (दो की वक्तव्यता। केवल चार देवलोक में में सहनन - प्रथम उपपन्न होते हैं? १. २ ३ a १० १० अशुद्ध " पल्योपम होता हैं गमक के ज्ञातव्य है उपपत्र होते हैं ? वक्तव्यता (भ. २४ / ३३६) । केवल इतना तिर्यग्योनिक ( यौगलिक) जीव अवगाहना- जघन्यतः सातिरेक दो गव्यूत | उपपत्र होते हैं ? नैरयिकों लेकर भवादेश तक ज्ञातव्य ज्ञातव्य है । तिर्यग्योनिक जीव) तीनों गमक होते हैं तो......? मनुष्यों की भांति उपपन्न होते हैं? की वक्तव्यता । ब्रह्मलोक ब्रह्मलोक देव संहनन ब्रह्मलोक उपपन्न होते हैं......?.. उपपात - जैसा देवों की भांति वक्तव्य है, (भ. २४/३५४), केवल इतना ग्रैवेयक देव में पल्योपम, होता है। गमक (भ. २४/३३७) क ज्ञातव्य है उपपन्न होते हैं ० ? (भ. २४/३३६) वक्तव्यता, इतना शुद्ध तिर्यग्योनिक ( यौगलिक ) - जीव अवगाहना जघन्यतः सातिरेक दो गव्यूत उपपन्न होते हैं ० ? नैरयिकों (भ. २४/७८, १०५) प्रारम्भ कर भवादेश पर्यन्त वक्तव्य ज्ञातव्य हैं। तिर्यग्योनिक-जीव) तीनों गमकों होते हैं तो ० ? मनुष्यों की भांति उपपन्न होते हैं ? की भी वक्तव्यता, ब्रह्म-देवलोक ब्रह्म देवलोक संहनन ब्रह्म देवलोक उपपन्न होते हैं ० ? उपपात जैसा देवों (भ. २४/३५२) का (उक्त है) वैसा ( वक्तव्य है), पर्याप्त संज्ञी मनुष्य जो होने योग्य है० ? सहस्रार देवलोक मनुष्यों (भ. २४/३५२ ) की भांति वक्तव्यता, इतना विशेष है- संहनन उपपन्न तीन, पृथक्त्व (दो तक वक्तव्य है, चार देवलोकों में में भी संहनन प्रथम उपपन्न होते हैं ० ? (भ. २४/३५४), इतना ग्रैवेयक देवों में
SR No.032417
Book TitleBhagwati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages590
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size15 MB
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