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________________ श. १८ : उ. १० : सू. १९१-१९६ भगवती सूत्र दसवां उद्देशक भावितात्मा का असि-धारा-आदि का अवगाहन-आदि-पद १९१. राजगृह नगर यावत् गौतम ने इस प्रकार कहाभंते! भावितात्मा अनगार तलवार की धारा अथवा छूरे की धारा पर अवगाहन कर सकता हां, अवगाहन कर सकता है। क्या वह वहां छिन्न अथवा भिन्न होता है? यह अर्थ संगत नहीं है। भावितात्मा अनगार पर शस्त्र नहीं चलता। १९२. भंते! भावितात्मा अनगार अग्निकाय के बीचोंबींच से जा सकता है? हां, जा सकता है। भंते! क्या वह वहां पर जलता है? गौतम! यह अर्थ संगत नहीं है। भावितात्मा अनगार पर शस्त्र नहीं चलता। १९३. भंते! भावितात्मा अनगार पुष्कल-संवर्तक महामेघ के बीचोंबीच से जा सकता है? हां, जा सकता है। भंते! क्या वह वहां पर आर्द्र होता है? गौतम! यह अर्थ संगत नहीं है, भावितात्मा अनगार पर शस्त्र नहीं चलता। १९४. भंते! भावितात्मा अनगार गंगा महानदी के प्रतिस्रोत में शीघ्र ही आ सकता है? हां, वह शीघ्र ही आ सकता है। भंते! क्या वह वहां विनिघात को प्राप्त होता है? गौतम! यह अर्थ संगत नहीं है, भावितात्मा अनगार पर शस्त्र नहीं चलता। १९५. भंते! भावितात्मा अनगार जल के आवर्त या जल की बूंद पर अवगाहन कर सकता हां, अवगाहन कर सकता है। भंते! क्या वह वहां पर पीड़ित होता है? गौतम! यह अर्थ संगत नहीं है। भावितात्मा अनगार पर शस्त्र नहीं चलता। परमाणु-पुद्गल-आदि का वायुकाय-स्पर्श-पद १९६. भंते! क्या परमाणु-पुद्गल वायुकाय से स्पृष्ट होता है? अथवा वायुकाय परमाणु-पुद्गल से स्पृष्ट होता है? गौतम! परमाणु-पुद्गल वायुकाय से स्पृष्ट होता है, वायुकाय परमाणु-पुद्गल से स्पृष्ट नहीं होता। ६५४
SR No.032417
Book TitleBhagwati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages590
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size15 MB
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