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________________ भगवती सूत्र श. १८ : उ. ९ : सू. १८३-१९० नवां उद्देशक भव्य-द्रव्य-पद १८३. राजगृह नगर यावत् गौतम ने इस प्रकार कहा-भंते! भव्य-द्रव्य-नैरयिक भव्य-द्रव्य-नैरयिक है? हां, है। १८४. भंते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है-भव्य-द्रव्य-नैरयिक भव्य-द्रव्य-नैरयिक गौतम! जो भव्य पञ्चेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक अथवा मनुष्य नैरयिक में उपपन्न होंगे। इस अपेक्षा से यह कहा जाता है। इसी प्रकार यावत् स्तनितकुमार की वक्तव्यता। १८५. भंते! भव्य-द्रव्य-पृथ्वीकायिक भव्य-द्रव्य-पृथ्वीकायिक है? हां, है। १८६. किस अपेक्षा से? गौतम! जो भव्य तिर्यग्योनिक, मनुष्य अथवा देव पृथ्वीकायिक-निकायों में उपपन्न होंगे। इस अपेक्षा से कहा जाता है। अप्कायिक, वनस्पतिकायिक की पूर्ववत् वक्तव्यता। तैजस, वायु, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रियों के जो भव्य तिर्यग्योनिक, मनुष्य, तैजस, वायु, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय अथवा चतुरिन्द्रियों में उपपन्न होंगे। पंचेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक के जो भव्य नैरयिक, तिर्यक्, योनिक, मनुष्य, देव, पञ्चेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक अथवा पञ्चेन्द्रिय-तिर्यग्योनिकों में उपपन्न होंगे। इस प्रकार मनुष्यों की वक्तव्यता। वाणमंतर, ज्योतिष्क, वैमानिक की नैरयिक की भांति वक्तव्यता। १८७. भंते! भव्य-द्रव्य-नैरयिक की कितने काल की स्थिति प्रज्ञप्त है? गौतम! जघन्यतः अंतर्मुहूर्त, उत्कृष्टतः क्रोड-पूर्व। १८८. भंते! भव्य-द्रव्य-असुरकुमार की कितने काल की स्थिति प्रज्ञप्त है? गौतम! जघन्यतः अंतर्मुहूर्त, उत्कृष्टतः तीन पल्योपम। इसी प्रकार यावत् स्तनितकुमार की वक्तव्यता। १८९. भंते ! भव्य-द्रव्य-पृथ्वीकायिक की पृच्छा। गौतम! जघन्यतः अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्टतः सातिरेक दो सागरोपम। इसी प्रकार अप्कायिक की वक्तव्यता। तैजस, वायुकायिक की नैरयिक की भांति वक्तव्यता। द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय की नैरयिक की भांति वक्तव्यता। पञ्वेन्द्रिय-तिग्योनिक की जघन्यतः अंतर्मुठूल, उत्कृष्टतः सैंतीस सागरोपम। इसी प्रकार मनुष्य की वक्तव्यता। वाणमंतर, ज्योतिष्क, वैमानिक की असुरकुमार की भांति वतव्यता। १९०. भंते! वह ऐसा ही ह। भंते! वह ऐरा ही है। ६५३
SR No.032417
Book TitleBhagwati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages590
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size15 MB
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