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________________ श. १४ : उ. ७,८ : सू. ८८-९८ भगवती सूत्र ८८. भंते! अनुत्तरोपपातिक-देव कितने कर्म अवशेष रहने पर अनुत्तरोपपातिक-देव के रूप में उपपन्न हुए? गौतम! श्रमण-निर्ग्रथ एक बेले (दो दिन के तप) में जितने कर्मों की निर्जरा करता है, इतने कर्मों के अवशेष रहने पर यदि आयुष्य पूरा हो जाए तो वे श्रमण निग्रंथ अनुत्तरोपपातिक-देव के रूप में उपपन्न होते हैं। ८९. भंते! वह ऐसा ही ह। भंते! वह ऐसा ही है। आठवां उद्देशक अबाधा-अतर-पद ९०. भंते! इस रत्नप्रभा-पृथ्वी और शर्कराप्रभा-पृथ्वी के मध्य कितना अबाधा-अंतर प्रज्ञप्त गौतम! असंख्येय हजार योजन अबाधा-अंतर प्रज्ञप्त है। ९१. भंते! शर्कराप्रभा-पृथ्वी और वालुकाप्रभा-पृथ्वी के मध्य कितना अबाधा-अंतर प्रज्ञप्त पूर्ववत्। इस प्रकार यावत् तमा और अधःसप्तमी के मध्य अबाधा-अंतर की वक्तव्यता। ९२. भंते! अधःसप्तमी-पृथ्वी और अलोक के मध्य कितना अबाधा-अंतर प्रज्ञप्त है? गौतम! असंख्येय हजार योजन अबाधा-अंतर प्रज्ञप्त है। ९३. भंते! रत्नप्रभा-पृथ्वी और ज्योतिष्क के मध्य कितना अबाधा-अंतर प्रज्ञप्त है? गौतम! सात सौ नब्बे योजन का अबाधा-अंतर प्रज्ञप्त है। ९४. भंते! ज्योतिष्क और सौधर्म-ईशान कल्प के मध्य कितना अबाधा-अंतर प्रज्ञप्त है? गौतम! असंख्येय हजार योजन का अबाधा-अंतर प्रज्ञप्त है। ९५. भंते! सौधर्म-ईशान और सनत्कुमार-माहेन्द्र के मध्य कितना अबाधा-अंतर प्रज्ञप्त है? पूर्ववत्। ९६. भंते! सनत्कुमार-माहेन्द्र और ब्रह्मलोक-कल्प के मध्य कितना अबाधा-अंतर प्रज्ञप्त है? पूर्ववत्। ९७. भंते! ब्रह्मलोक और लांतक-कल्प के मध्य कितना अबाधा-अंतर प्रज्ञप्त है? पूर्ववत्। ९८. भंते! लांतक और महाशुक्र-कल्प के मध्य कितना अबाधा-अंतर प्रज्ञप्त है? पूर्ववत्। इसी प्रकार महाशुक्र-कल्प और सहस्रार के मध्य, इसी प्रकार सहस्रार और आनत-प्राणत-कल्प के मध्य, इसी प्रकार आनत-प्राणत और आरण-अच्युत-कल्प के मध्य, इसी प्रकार आरण-अच्युत और ग्रैवेयक-विमान के मध्य, इसी प्रकार ग्रैवेयक-विमान और अनुत्तर-विमान के मध्य अबाधा-अंतर को वक्तव्यता।
SR No.032417
Book TitleBhagwati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages590
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size15 MB
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