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________________ भगवती सूत्र श. १४ : उ. ७ : सू. ८२-८७ भक्त-प्रत्याख्यात का आहार-पद ८२. भंते! भक्त-प्रत्याख्यान करने वाला अनगार मूर्च्छित, गृद्ध, ग्रथित और आसक्त होकर आहार करता है । उसके पश्चात् वह स्वभाव से काल करता है-मारणान्तिक-समुद्घात करता है। उसके पश्चात् वह अमूर्च्छित, अगृद्ध, अग्रथित और अनासक्त होकर आहार करता है? हां गौतम! भक्त-प्रत्याख्यान करने वाला अनगार मूर्च्छित, गृद्ध, ग्रथित और आसक्त होकर आहार करता है। उसके पश्चात् वह स्वभाव से काल करता है, उसके पश्चात् अमूर्च्छित, अगृद्ध, अग्रथित, अनासक्त होकर आहार करता है। ८३. भंते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है-भक्त-प्रत्याख्यान करने वाला अनगार मूर्च्छित, गृद्ध, ग्रथित और आसक्त होकर आहार करता है। उसके पश्चात् वह स्वभाव से काल करता है। उसके पश्चात् वह अमूर्च्छित, अगृद्ध, अग्रथित और अनासक्त होकर आहार करता है? गौतम! भक्त-प्रत्याख्यान करने वाला अनगार मूर्छित, गृद्ध, ग्रथित और आसक्त होकर आहार करता है। उसके पश्चात् वह स्वभाव से काल करता है, उसके पश्चात् वह अमूर्च्छित, अगृद्ध, अग्रथित और अनासक्त होकर आहार करता है। गौतम! इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है यावत् आहार करता है। लव-सप्तम-देव-पद ८४. भंते! लवसप्तम देव लवसप्तम देव हैं? हां, हैं। ८५. भंते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है-लवसप्तम देव लवसप्तम देव हैं? गौतम ! जैसे कोई पुरुष तरुण यावत् सूक्ष्म शिल्प से समन्वित है। पक्व करने योग्य अवस्था को प्राप्त, परिजात, हरित, हरित कांड वाले, तीक्ष्ण की हुई दांती से विकीर्ण नाल वाले, शाली, व्रीही, गेहूं, यव अथवा यवयव को इकट्ठा कर, मुट्ठी में पकड़कर यावत् अभी अभी ऐसा प्रदर्शित कर चिमुटी बजाने जितने समय में सात लवों को काट देता है, सात लवों को काटने में जितना समय लगता है यदि गौतम! उतने समय तक यदि साधु का जीवन और रह जाता तो वे देव उसी जन्म में सिद्ध, प्रशान्त, मुक्त, परिनिर्वृत हो जाते, सब दुःखों का अन्त कर देते। गौतम! इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है-लवसप्तम देव लवसप्तम देव हैं। अनुत्तरोपपातिक-देव-पद ८६. भंते! अनुत्तरोपपातिक-देव अनुत्तरोपपातिक-देव हैं? हां, हैं। ८७. भंते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है-अनुत्तरोपपातिक-देव अनुत्तरोपपातिक-देव गौतम! अनुत्तरोपपातिक-देव अनुत्तर शब्द, अनुत्तर रूप, अनुत्तर गंध, अनुत्तर रस और अनुत्तर स्पर्श वाले होते हैं। गौतम! इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है अनुत्तरोपपातिक-देव अनुत्तरोपपातिक-देव हैं। ५३५
SR No.032417
Book TitleBhagwati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages590
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size15 MB
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