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________________ भगवती सूत्र श. १४ : उ. ८ : सू. ९९-१०७ ९९. भंते! अनुत्तर - विमान और ईषत् प्राग्भारा - पृथ्वी के मध्य कितना अबाधा - अंतर प्रज्ञप्त है ? गौतम ! बारह योजन अबाधा - अंतर प्रज्ञप्त है। १००. भंते! ईषत् - प्राग्भारा - पृथ्वी और अलोक गौतम ! एक योजन से कुछ न्यून अबाधा - अंतर प्रज्ञप्त है। वृक्ष का पुनर्भव- पद १०१. भंते! यह शाल वृक्ष गर्मी से अभिहत, तृष्णा से अभिहत, दवाग्नि ज्वाला से अभिहत होकर कालमास में काल को प्राप्त कर कहां जाएगा ? कहां उपपन्न होगा ? मध्य कितना अबाधा - अंतर प्रज्ञप्त है ? गौतम! इस राजगृह नगर में शालवृक्ष के रूप में पुनः उपपन्न होगा । वह वहां अर्चित, वंदित, पूजित, सत्कारित, सम्मानित, दिव्य (प्रधान), सत्य, सत्यावपात, सन्निहित प्रातिहार्य और 'लाउल्लोइयमहित' होगा - वृक्ष का भूमिभाग गोबर आदि से लिपा हुआ और भींत खड़िया पुती हुई होगी। १०२. भंते! वह शाल-वृक्ष वहां से अनंतर उद्वर्तन कर कहां जाएगा ? कहां उपपन्न होगा ? गौतम ! महाविदेह क्षेत्र में सिद्ध होगा यावत् सब दुःखों का अंत करेगा । १०३. भंते! यह शालयष्टिक-वृक्ष गर्मी से अभिहत, तृष्णा से अभिहत, दवाग्नि ज्वाला से अभिहत होकर कालमास में काल को प्राप्त कर कहां जाएगा ? कहां उपपन्न होगा ? गौतम ! इस जंबूद्वीप द्वीप में, भारतवर्ष में विंध्यगिरि की तलहटी में महेश्वरी नगरी में शाल्मली वृक्ष के रूप में उपपन्न होगा। वह वहां अर्चित, वंदित, पूजित, सत्कारित, सम्मानित, दिव्य, सत्य, सत्यावपात, सन्निहित प्रातिहार्य और 'लाडल्लोइयमहित ' होगा—वृक्ष का भूमिभाग गोबर आदि से लिपा हुआ और भींत खड़िया से पुती हुई होगी। १०४. भंते! वह वहां से अनंतर उद्वर्तन कर कहां जाएगा ? कहां उपपन्न होगा ? गौतम ! महाविदेह क्षेत्र में सिद्ध होगा यावत् सब दुःखों का अंत करेगा । १०५. भंते! यह उदुम्बरयष्टिका - वृक्ष गर्मी से अभिहत, तृष्णा से अभिहत और दवाग्नि ज्वाला से अभिहत होकर कालमास में काल को प्राप्त कर कहां जाएगा ? कहां उपपन्न होगा ? गौतम ! इसी जंबूद्वीप द्वीप में भारतवर्ष में पाटलिपुत्र नगर में पाटली वृक्ष के रूप में पुनः उपपन्न होगा। वह वहां अर्चित, वंदित, पूजित, सत्कारित, सम्मानित, दिव्य, सत्य, सत्यावपात, सन्निहित-प्रातिहार्य तथा लाउल्लोइयमहित होगा । १०६. भंते! वह वहां से अनंतर उद्वर्तन कर कहां जाएगा ? कहां उपपन्न होगा ? गौतम ! महाविदेह क्षेत्र में सिद्ध होगा यावत् सब दुःखों का अंत करेगा । अम्मड अंतेवासी - पद १०७. उस काल और उस समय में अम्मड परिव्राजक के सात सौ अंतेवासी ग्रीष्मकाल समय में ज्येष्ठ मास में गंगा महानदी के दोनों तटों पर होते हुए कंपिलपुर नगर से पुरिमताल नगर की ओर विहार के लिए प्रस्थित हुए । ५३७
SR No.032417
Book TitleBhagwati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages590
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size15 MB
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