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________________ श. १४ : उ. ७ : सू. ८१ भगवती सूत्र -व्यतिरिक्त पुद्गल से क्षेत्रतः तुल्य नहीं है। इसी प्रकार समान असंख्येय-प्रदेशावगाढ की वक्तव्यता। गौतम! इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है क्षेत्र-तुल्य क्षेत्र-तुल्य है। भंते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है-काल-तुल्य काल-तुल्य है? गौतम! एक समय की स्थिति वाला पुद्गल एक समय की स्थिति वाले पुद्गल से कालतः तुल्य है। एक समय की स्थिति वाला पुद्गल एक समय की स्थिति से व्यतिरिक्त पुद्गल से कालतः तुल्य नहीं है। इसी प्रकार यावत् दस समय की स्थिति वाले, इसी प्रकार समान संख्येय समय की स्थिति वाले, इसी प्रकार समान असंख्येय समय की स्थिति वाले पुद्गल की वक्तव्यता। गौतम ! इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है-काल-तुल्य काल-तुल्य है। भंते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है भव-तुल्य भव-तुल्य है। गौतम! नैरयिक नैरयिक से भव की अपेक्षा तुल्य है, नैरयिक-व्यतिरिक्त से भव की अपेक्षा तुल्य नहीं है। इसी प्रकार तिर्यग्योनिक की, इसी प्रकार मनुष्य की, इसी प्रकार देव की वक्तव्यता। गौतम ! इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है-भव-तुल्य भव-तुल्य है। भंते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है भाव-तुल्य भाव-तुल्य है? गौतम! एक-गुण-कृष्ण पुद्गल एक-गुण-कृष्ण पुद्गल से भावतः तुल्य है। एक-गुण-कृष्ण पुद्गल एक-गुण-कृष्ण-व्यतिरिक्त पुद्गल से भावतः तुल्य नहीं है। इसी प्रकार यावत् दस-गुण-कृष्ण की, इसी प्रकार समान संख्येय-गुण-कृष्ण की, इसी प्रकार समान असंख्येय-गुण-कृष्ण की वक्तव्यता, इसी प्रकार समान अनंत-गुण-कृष्ण की वक्तव्यता। कृष्ण की भांति नील, लोहित, हारिद्र और शुक्ल की वक्तव्यता। इसी प्रकार सुगंध और दुर्गन्ध की वक्तव्यता। इसी प्रकार तिक्त- यावत् मधुर-रस की वक्तव्यता। इसी प्रकार कर्कश- यावत् रूक्ष-स्पर्श की वक्तव्यता। औदयिक भाव औदयिक भाव से भावतः तुल्य है। औदयिक भाव औदयिक-व्यतिरिक्त भाव से भावतः तुल्य नहीं है। इसी प्रकार औपशमिक, क्षायिक, क्षायोपशमिक और पारिणामिक भाव की वक्तव्यता। सांनिपातिक भाव सांनिपातिक भाव से भावतः तुल्य है, सांनिपातिक भाव सांनिपातिक-व्यतिरिक्त भाव से भावतः तुल्य नहीं है। गौतम! इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है भाव-तुल्य भाव-तुल्य है। भंते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है-संस्थान-तुल्य संस्थान-तुल्य है। गौतम! परिमंडल-संस्थान परिमंडल-संस्थान से संस्थानतः तुल्य है। परिमंडल-संस्थान परिमंडल-संस्थान-व्यतिरिक्त संस्थान से संस्थानतः तुल्य नहीं है। इसी प्रकार वृत्त, चतुरस्र, आयत की वक्तव्यता। समचतुरस्र-संस्थान समचतुरस्र-संस्थान से संस्थानतः तुल्य है। समचतुरस्र-संस्थान समचतुरस्र-व्यतिरिक्त संस्थान से संस्थानतः तुल्य नहीं है। इसी प्रकार परिमंडल संस्थान की वक्तव्यता। इसी प्रकार सादि-, कुब्ज-, वामन- और हुंड-संस्थान की वक्तव्यता। गौतम! इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है संस्थान-तुल्य संस्थान-तुल्य है। ५३४
SR No.032417
Book TitleBhagwati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages590
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size15 MB
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