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________________ श. १ : उ. २ : सू. ११०-११५ भगवती सूत्र काल उससे अनन्त-गुणा अधिक है और शून्य-काल मिश्र-काल से अनन्त-गुणा अधिक है। १११. भन्ते! नैरयिक, तिर्यग्योनिक, मनुष्य और देव-इनके संसार-अवस्थान-काल में कौन किनसे अल्प, अधिक, तुल्य अथवा विशेषाधिक है? गौतम! मनुष्यों का संसार-अवस्थान-काल सबसे अल्प है, नैरयिक जीवों का संसार-अवस्थान-काल उससे असंख्येय-गुणा अधिक है, देवों का संसार-अवस्थान-काल उससे असंख्येय-गुणा अधिक है और तिर्यग्योनिक जीवों का संसार-अवस्थान-काल उससे अनन्त-गुणा अधिक है। अन्तक्रिया-पद ११२. भन्ते! क्या जीव अन्तक्रिया करता है? गौतम! कोई जीव करता है, कोई जीव नहीं करता। यहां पण्णवणा का अंतक्रियापद (पद२०) ज्ञातव्य है। असंज्ञी-आयु-पद ११३. भन्ते! देवत्व प्राप्त करने योग्य असंयमी संयम की आराधना करने वाले, संयम की विराधना करने वाले, संयमासंयम की आराधना करने वाले, संयमासंयम की विराधना करने वाले असंज्ञी, तापस, कान्दर्पिक, चरक-परिव्राजक, किल्विषिक, तिर्यञ्च, आजीविक, आभियोगिक और दर्शनभ्रष्ट स्वतीर्थिक-जैन मुनि-वेषधारी ये देवलोक में उपपन्न हों तो किसका कहां उपपात प्रज्ञप्त है? गौतम! देवत्व प्राप्त करने योग्य असंयमी जघन्यतः भवनवासी, उत्कर्षतः उपरिवर्ती ग्रैवेयकों में, संयम की आराधना करने वाले जघन्यतः सौधर्म-कल्प, उत्कर्षतः सर्वार्थसिद्ध-विमान में, संयम की विराधना करने वाले जघन्यतः भवनवासी, उत्कर्षतः सौधर्म-कल्प में, संयमासंयम की आराधना करने वाले जघन्यतः सौधर्म-कल्प, उत्कर्षतः अच्युत-कल्प में, संयमासंयम की विराधना करने वाले जघन्यतः भवनवासी, उत्कर्षतः ज्योतिष्क-देवों में, असंज्ञी जीव जघन्यतः भवनवासी. उत्कर्षतः वानमंतरों में उपपन्न होते हैं। अवशेष सब जघन्यतः भवनवासी में उपपन्न होते हैं। उनका उत्कर्षतः उपपात इस प्रकार होगा-तापस ज्योतिष्क-देवों में, कान्दर्पिक सौधर्म-कल्प में, चरक-परिव्राजक ब्रह्मलोक-कल्प में, किल्विषिक लान्तककल्प में, तिर्यञ्च सहस्रार-कल्प में, आजीविक अच्युत-कल्प में, आभियोगिक अच्युत-कल्प में, दर्शनभ्रष्ट स्वतीर्थिक–जैन मुनि-वेषधारी उपरिवर्ती ग्रैवेयकों में उपपन्न होते हैं। ११४. भन्ते! असंज्ञी-आयु कितने प्रकार की प्रज्ञप्त है? गौतम! असंज्ञी-आयु चार प्रकार की प्रज्ञप्त है, जैसे-नैरयिक-असंज्ञी-आयु, तिर्यग्योनिक-असंज्ञी-आयु, मनुष्य-असंज्ञी-आयु, देव असंज्ञी-आयु। ११५. भन्ते! क्या असंज्ञी जीव नैरयिक-आयु का बन्ध करता है? तिर्यग्योनिक-आयु का बन्ध करता है? मनुष्य-आयु का बन्ध करता है? देव-आयु का बन्ध करता है? हां, गौतम! यह नैरयिक-आयु का भी बन्ध करता है। तिर्यग्योनिक-आयु का भी बन्ध
SR No.032416
Book TitleBhagwati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages546
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size14 MB
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