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________________ भगवती सूत्र श. १ : उ. २ : सू. १०१-११० केवल वेदना-सूत्र में नैरयिक की वक्तव्यता औधिक-सूत्र के समान है। जिन जीवों के तेजो-लेश्या और पद्म-लेश्या होती हैं, वे औधिक-सूत्र की भांति वक्तव्य हैं। केवल क्रिया-सूत्र में मनुष्य के सराग और वीतराग ये भेद वक्तव्य नहीं हैं। संग्रहणी गाथा (पूर्व आलापक में) उदीर्ण दुःख और आयु का वेदन, समान, कर्म, वर्ण लेश्या, वेदना, क्रिया और आयु–ये इतने विषय ज्ञातव्य हैं। लेश्या-पद १०२. भन्ते! लेश्याएं कितनी प्रज्ञप्त हैं? गौतम! लेश्याएं छह प्रज्ञप्त हैं, जैसे-कृष्ण-लेश्या, नील-लेश्या, कापोत-लेश्या, तेजो-लेश्या, पद्म-लेश्या और शुक्ल-लेश्या। यहां (पण्ण्वणा) लेश्या-पद का दूसरा उद्देशक ऋद्धि (सूत्र ३६-८९) तक वक्तव्य है। जीवों का भव-परिवर्तन-पद १०३. भन्ते! आदिष्ट (विशेषणों से विशिष्ट) जीव का अतीत काल में संसार में अवस्थानकाल कितने प्रकार का प्रज्ञप्त है? गौतम! उसका संसार में अवस्थान-काल चार प्रकार का प्रज्ञप्त है, जैसे-नैरयिक-संसारअवस्थान-काल, तिर्यग्योनिक-संसार-अवस्थान-काल, मनुष्य-संसार-अवस्थान-काल और देव-संसार-अवस्थान-काल। १०४. भन्ते! नैरयिकों का संसार-अवस्थान-काल कितने प्रकार का प्रज्ञप्त है? गौतम! वह तीन प्रकार का प्रज्ञप्त है, जैसे-शून्य-काल, अशून्य-काल और मिश्र-काल। १०५. भन्ते! तिर्यग्योनिक-जीवों का संसार-अवस्थान-काल कितने प्रकार का प्रज्ञप्त है? गौतम! वह दो प्रकार का प्रज्ञप्त है, जैसे-अशून्य-काल और मिश्र-काल। १०६. भन्ते! मनुष्यों का संसार-अवस्थान-काल कितने प्रकार का प्रज्ञप्त है? गौतम! वह तीन प्रकार का प्रज्ञप्त है, जैसे-शून्यकाल, अशून्यकाल और मिश्रकाल। १०७. भन्ते! देवों का संसार-अवस्थान-काल कितने प्रकार का प्रज्ञप्त है? गौतम! वह तीन प्रकार का प्रज्ञप्त है, जैसे-शून्यकाल, अशून्यकाल और मिश्रकाल । १०८. भन्ते! नैरयिक-जीवों के संसार-अवस्थान-काल के शून्यकाल, अशून्य-काल और मिश्रकाल में कौन किनसे अल्प, अधिक, तुल्य अथवा विशेषाधिक है? गौतम! सबसे अल्प अशून्यकाल है, मिश्रकाल उससे अनन्त-गुणा अधिक है और शून्यकाल मिश्र-काल से अनन्त-गुणा अधिक है। १०९. तिर्यग्योनिक-जीवों के संसार-अवस्थान-काल में सबसे अल्प अशून्य-काल है और मिश्र-काल उससे अनन्त-गुणा अधिक है। ११०. मनुष्य और देवों के संसार-अवस्थान-काल में सबसे अल्प अशून्य-काल है, मिश्र
SR No.032416
Book TitleBhagwati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages546
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size14 MB
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