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________________ भगवती सूत्र श. १ : उ. १ : सू. ४५-४९ गौतम ! असंवृत अनगार आयुष्य-कर्म को छोड़कर शेष सात कर्मों की शिथिल बन्धन-बद्ध प्रकृतियों को गाढ़ बन्धन-बद्ध करता है, अल्पकालिक स्थिति वाली प्रकृतियों को दीर्घकालिक स्थिति वाली करता है, मन्द अनुभाव वाली प्रकृतियों को तीव्र अनुभाव वाली करता है, अल्पप्रदेश- परिमाण वाली प्रकृतियों को बहुप्रदेश- परिमाण वाली करता है; आयुष्य-कर्म का बन्ध कदाचित् करता है और कदाचित् नहीं करता, वह असातवेदनीय कर्म का बहुत-बहुत उपचय करता है और आदि - अन्तहीन दीर्घपथवाले चतुर्गत्यात्मक संसारकान्तार में पर्यटन करता है। गौतम ! इस अपेक्षा से असंवृत अनगार सिद्ध, प्रशान्त, मुक्त और परिनिर्वृत नहीं होता, सब दुःखों का अन्त नहीं करता । ४६. भन्ते! क्या संवृत अनगार सिद्ध, प्रशान्त, मुक्त और परिनिर्वृत होता है, सब दुःखों का अन्त करता है ? हां! वह सिद्ध, प्रशान्त, मुक्त और परिनिर्वृत होता है, सब दुःखों का अन्त करता है । ४७. भन्ते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है संवृत अनगार सिद्ध, प्रशान्त, मुक्त और परिनिर्वृत होता है, सब दुःखों का अन्त करता है ? गौतम ! संवृत अनगार आयुष्य-कर्म को छोड़कर शेष सात कर्मों की गाढ- बन्धन-बद्ध प्रकृतियों को शिथिल - बन्धन - बद्ध करता है, दीर्घकालिक स्थिति वाली प्रकृतियों को अल्पकालिक स्थिति वाली करता है, तीव्र अनुभाव वाली प्रकृतियों को मन्द अनुभाव वाली करता है, बहुप्रदेश - परिमाण वाली प्रकृतियों को अल्पप्रदेश-परिमाण वाली करता है; वह आयुष्य कर्म का बन्ध नहीं करता, असातवेदनीय कर्म का बहुत - बहुत उपचय नहीं करता और आदि - अन्तहीन दीर्घपथवाले चतुर्गत्यात्मक संसार- कान्तार का व्यतिक्रमण करता है । गौतम ! इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है - संवृत अनगार सिद्ध, प्रशान्त, मुक्त और परिनिर्वृत होता है, सब दुःखों का अन्त करता है । - असंयत का वानमन्तरदेव - पद ४८. भन्ते! असंयत, अविरत और अतीत पाप कर्म का प्रतिक्रमण तथा अनागत पाप-कर्म का प्रत्याख्यान न करने वाला जीव इस तिर्यंच या मनुष्य जन्म से मरकर क्या अगले जन्म में देव होता है ? गौतम ! कोई जीव देव होता है और कोई जीव देव नहीं होता। ४९. भन्ते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है- असंयत, अविरत और अतीत पाप-कर्म का प्रतिक्रमण तथा अनागत पाप कर्म का प्रत्याख्यान न करने वाला कोई जीव इस तिर्यंच या मनुष्य जन्म से मरकर अगले जन्म में देव होता है और कोई जीव देव नहीं होता ? गौतम ! ग्राम, आकर, नगर निगम, राजधानी, खेट, कर्बट, मडम्ब, द्रोणमुख, पत्तन, आश्रम और सन्निवेश में रहने वाले जो ये जीव निर्जरा की अभिलाषा के बिना प्यास और भूख सहन करते हैं, ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं, सर्दी, गर्मी, दंश-मशक, अस्नान, स्वेद, रज, मैल, पंक ( गीला मैल) के परिताप द्वारा थोड़े समय या अधिक समय तक अपने आपको परितप्त करते हैं, अपने आपको परितप्त कर मृत्यु-काल में मृत्यु का वरण कर किसी एक वानमंतर - ७
SR No.032416
Book TitleBhagwati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages546
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size14 MB
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