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________________ श. १ : उ. १ : सू. २४-३२ संक्रमण किया था, करते हैं ओर करेंगे। निधत्तन किया था, करते हैं और करेंगे। निकाचन किया था, करते हैं और करेंगे। संग्रहणी गाथा भगवती सूत्र भेदित, चित, उपचित उदीरित, वेदित, निर्जीर्ण, अपवर्तन, संक्रमण, निधत्तन और निकाचन - इन पदों के साथ अतीत, वर्तमान और अनागत तीनों काल वक्तव्य हैं। २५. भन्ते ! नैरयिक- जीव तैजस- और कर्म शरीर के रूप में जिन पुद्गलों को ग्रहण करते हैं, क्या उन्हें अतीत-काल- समय में ग्रहण करते हैं? वर्तमान-काल- समय में ग्रहण करते हैं ? भविष्य-काल- समय में ग्रहण करते हैं ? गौतम ! अतीत-काल- समय में ग्रहण नहीं करते, वर्तमान-काल समय में ग्रहण करते हैं, भविष्य काल - समय में ग्रहण नहीं करते । २६. भन्ते ! नैरयिक- जीव तैजस और कर्म शरीर के रूप में गृहीत जिन पुद्गलों की उदीरणा करते हैं, क्या अतीत-काल- समय में गृहीत उन पुद्गलों की उदीरणा करते हैं ? क्या वर्तमानकाल- समय में गृह्यमाण पुद्गलों की उदीरणा करते हैं? क्या ग्रहण - समय के पुरोवर्ती ( ग्रहीष्यमाण) पुद्गलों की उदीरणा करते हैं? गौतम! अतीत-काल-समय में गृहीत- पुद्गलों की उदीरणा करते हैं, वर्तमान- काल-समय में गृह्यमाण पुद्गलों की उदीरणा नहीं करते, ग्रहण - समय के पुरोवर्ती ( ग्रहीष्यमाण) पुद्गलों की उदीरणा नहीं करते । २७. इसी प्रकार वेदन और निर्जरण करते हैं । २८. भन्ते ! नैरयिक-जीव क्या जीव- प्रदेशों से चलित कर्म का बन्ध करते हैं अथवा अचलित कर्म का बंध करते हैं ? गौतम ! वे चलित कर्म का बन्ध नहीं करते, अचलित कर्म का बन्ध करते हैं। २९. भन्ते ! नैरयिक-जीव क्या जीव- प्रदेशों से चलित कर्म की उदीरणा करते हैं अथवा अचलित कर्म की उदीरणा करते हैं? गौतम ! वे चलित कर्म की उदीरणा नहीं करते, अचलित कर्म की उदीरणा करते हैं । ३०. इसी प्रकार अचलित कर्म का वेदन, अपवर्तन, संक्रमण, निधत्तन और निकाचन करते हैं । ३१. भन्ते ! नैरयिक-जीव क्या जीव- प्रदेशों से चलित कर्म की निर्जरा करते हैं अथवा अचलित कर्म की निर्जरा करते हैं ? गौतम ! वे चलित कर्म की निर्जरा करते हैं, अचलित कर्म की निर्जरा नहीं करते । संग्रहणी गाथा बन्ध, उदय, वेदन, अपवर्तन, संक्रमण, निधत्तन और निकाचन जीव- प्रदेशों से अचलित कर्म का होता है तथा निर्जरा जीव- प्रदेशों से चलित कर्म की होती है । ३२. इसी प्रकार स्थिति और आहार वक्तव्य हैं । 'स्थिति-पद' (पण्णवणा, पद ४ ) में जो स्थिति निर्दिष्ट है, सब जीवों की स्थिति वैसे ही वक्तव्य है। आहार भी पण्णवणा के ४
SR No.032416
Book TitleBhagwati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages546
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size14 MB
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