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________________ भगवती सूत्र श. १ : उ. १ : सू. १५-२४ संग्रहणी गाथा नैरयिकों की स्थिति कितनी है? वे कितने काल से उच्छ्वास लेते हैं? क्या वे आहार के इच्छुक हैं? वे किस प्रकार का आहार करते हैं? वे सब आत्म-प्रदेशों से आहर करते हैं? वे कितने भाग का आहार करते हैं? वे आहार-परिणाम-योग्य सब पुद्गलों का आहार करते हैं? वे उसका किस रूप में परिणमन करते हैं? । १६. भन्ते! क्या नैरयिक जीवों के पूर्वगृहीत पुद्गल परिणत हुए हैं? पूर्वगृहीत और गृह्यमाण पुद्गल परिणत हुए हैं? पूर्व-अगृहीत और भविष्य में गृह्यमाण पुद्गल परिणत हुए हैं? पूर्व-अगृहीत और भविष्य में अगृह्यमाण पुद्गल परिणत हुए हैं? गौतम! नैरयिक जीवों के पूर्वगृहीत पुद्गल परिणत हुए हैं। पूर्व-गृहीत और गृह्यमाण पुद्गल परिणत हुए और परिणत हो रहे हैं। पूर्व-अगृहीत और भविष्य में गृह्यमाण पुद्गल परिणत नहीं हुए हैं, किन्तु वे परिणत होंगे। पूर्व-अगृहीत और भविष्य में अगृह्यमाण पुद्गल परिणत नहीं हुए हैं और परिणत नहीं होंगे। १७. भन्ते! क्या नैरयिक-जीवों के पूर्वगृहीत पुद्गल चित हुए हैं? यह प्रश्न है। जैसे परिणत का सूत्र है, चित का सूत्र भी वैसे ही वक्तव्य है। संग्रहणी गाथा १८. इसी प्रकार उपचित, उदीरित, वेदित और निर्जीर्ण वक्तव्य हैं। परिणत, चित, उपचित, उदीरित, वेदित और निर्जीर्ण-इनमें से प्रत्येक पद में पुद्गल के पूर्वोक्त चार भंग होते हैं। १९. भन्ते! नैरयिक-जीवों के पुद्गलों का भेदन कितने प्रकार का होता है? गौतम! कर्म-पुद्गल-वर्गणा की अपेक्षा से पुद्गलों का भेदन दो प्रकार का होता है, जैसे-अणु और बादर। २०. भन्ते! नैरयिक-जीवों के पुद्गलों का चय कितने प्रकार का होता है? गौतम! आहार-पुद्गल-वर्गणा की अपेक्षा से पुद्गलों का चय दो प्रकार का होता है, जैसे-अणु और बादर। २१. इसी प्रकार उपचय वक्तव्य है। २२. भन्ते! नैरयिक-जीव पुद्गलों की उदीरणा कितने प्रकार की करते हैं? गौतम! कर्म-पुद्गल-वर्गणा की अपेक्षा से दो प्रकार के पुद्गलों की उदीरणा करते हैं, जैसे-अणु और बादर। २३. शेष सूत्र भी इसी प्रकार वक्तव्य हैं-वेदन करते हैं, निर्जरा करते हैं। २४. इसी प्रकार अपवर्तन किया था, करते हैं और करेंगे।
SR No.032416
Book TitleBhagwati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages546
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size14 MB
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