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________________ पृष्ठ | पंक्ति अशुद्ध २६४ २४ -परिणत की वक्तव्यता। इसी प्रकार अपर्याप्तक की वक्तव्यता। पर्याप्तक की वक्तव्यता भी इसी -परिणत पुद्गल) भी (वक्तव्य है)। अपर्याप्तक भी, पर्याप्तक भी इसी प्रकार (वक्तव्य है), प्रकार है। १४-१५ | इस प्रकार सब अपर्याप्तक-वानमन्तर-देवों की वक्तव्यता। सब अपर्याप्तक-ज्योतिष्क-देवों | इस प्रकार वानमन्तर-देवों में सभी अपर्याप्तकों की (वक्तव्यता)। ज्योतिष्क-देवों में सभी अपर्याप्तकों की (वक्तव्यता) २७६ २४ | इसी प्रकार असुरकुमार से स्तनितकुमार तक की वक्तव्यता नैरयिक की भांति ज्ञातव्य है। पर्याप्त- इस प्रकार (पर्याप्तक- नैरयिकों की भांति यावत् (पर्याप्तक-) स्तनितकुमार (वक्तव्य है)। (पर्याप्तक-) -पृथ्वीकायिक की वक्तव्यता एकेन्द्रिय की भांति ज्ञातव्य है। इसी प्रकार यावत् पर्याप्त-चतुरिन्द्रिय पृथ्वीकायिक एकेन्द्रियों की भांति (वक्तव्य है)। इस प्रकार यावत् (पर्याप्तक-) चतुरिन्द्रिय (वक्तव्य है)। की वक्तव्यता। २७६ १२५ | पर्याप्त-मनुष्यों की वक्तव्यता सकायिक-जीवों की भांति ज्ञातव्य है। पर्याप्त-वानमंतर-, ज्योतिष्क- (पर्याप्तक-) मनुष्य सकायिक-जीवों की भांति (वक्तव्य है)। (पर्याप्तक) वानमंतर-, (पर्याप्तक-) और वैमानिक-देवों की वक्तव्यता नैरयिक की भांति ज्ञातव्य है। ज्योतिष्क- और (पर्याप्तक-) वैमानिक-देव (पर्याप्तक-) नैरयिकों की भांति (वक्तव्य है)। ४८३ से आवेष्टित-परिवेष्टित है। नैरयिक की भांति वैमानिक तक के दण्डकों की वक्तव्यता, से (आवेष्टित-परिवेष्टित है)। नैरयिक की भांति इस प्रकार यावत् वैमानिक की (वक्तव्यता), ३३१ ४८८-४८६ ४-६ नाम- और गोत्र कर्म के साथ ज्ञानावरणीय-कर्म की वक्तव्यता। जैसे ज्ञानावरणीय के साथ दर्शना- नाम-कर्म के साथ भी, इस प्रकार गोत्र-कर्म के साथ भी (ज्ञानावरणीय-कर्म की वक्तव्यता)। जैसे -वरणीय की वक्तव्यता है, वैसे ज्ञानावरणीय दर्शनावरणीय के साथ ज्ञानावरणीय की (वक्तव्यता है), वैसे ही ज्ञानावरणीय निम्नांकित स्थानों पर -परिणत (अशुद्ध) की जगह परिणत पुद्गला(शुद्ध) पढ़ें२६०/५/२, २६१/६-११,१३-१५/२, २६२/१५/२, २६२/१६,२०/२, २६३/२७/४; २६३/२८/३,४, २६३/२८/३; २६४/२६/४; २६४/३१/२,३, २६४/३२/२-५, २६४/३३/२,३, २६४/३४/३; २६५/३५/३,४, २६५/३६/४,६,११॥ निम्नांकित स्थानों पर परिणत (अशुद्ध) की जगह परिणत (पुद्गलों) को ग्रहण (शुद्ध) पढ़ें२६०/५,६/१; २६१७-११,१३-१५/१; २६२/१६-२१/१; २६३/२२-२४,२६/१; २६६/३६/८; २६६/४१/२ (दानों बार), ३,४; २६६/४२/३,४,६,७,८, २६७/४२/१० (दोनों बार), ११,१३॥ निम्नांकित स्थानों पर -परिणत (अशुद्ध) की जगह परिणत (पुद्गल) (शुद्ध) पढ़ें२६०/५/३; २६१/६-११/३,४, २६२/१५,१६/३; २६२/१७/४,१, २६२/१८/२-१; २६२/२७/१-३, २६३/२८,२६/१,२,२६४/३०/१; २६४/३१/१,८,६; २६४/३२/१; २६४/३३/१ (दोनों बार); २६४/३४/१,२,५,६; २६४/३५/२ (दोनों बार), ६,१०; २६५/३६/१-८८ २६५/३७/१,२,५,६, २६५/३८/१; २६६/३८/२,६ (सर्वत्र); २६६/३६/२ (सर्वत्र), ७ (सर्वत्र); २६६/४०/२,३, २६६/४१/५ २६६/४२/२ (दूसरी, तीसरी बार), ३-६; २६७/४२/१०,११,१३॥ शतक १० | वक्तव्यता। इतना वक्तव्यता, उत्तर दिशा के इन्द्रों की भूतानंद (म.१०/८०) की भांति (वक्तव्यता), उनके लोकपालों की भी भूतानंद के लोकपालों (म.१०/८१) की भांति (वक्तव्यता), इतना शतक ११ ४०३ ३,४ | गौतम! एक जीव वाला है, अनेक जीव वाला नहीं है। प्रथम पत्र के पश्चात जो अन्य जीव- गौतम! (एकपत्रक उत्पल) एक जीव वाला है, अनेक जीव वाला नहीं है। उसके पश्चात जो अन्य पत्र उत्पन्न होते हैं, वे एक जीव वाले नहीं है, अनेक जीव वाले हैं। जीव उपपन्न होते हैं, वे एक जीव नहीं है, अनेक जीव है। ३६६ : संक्षिप्त रूप : सं. गा. - संग्रहणी गाथा भ. - भगवती राय. - रायपसेणियं ओवा. - ओवाइयं ठा. जं. - ठाणं -जंबूहीवपण्णत्ती
SR No.032416
Book TitleBhagwati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages546
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size14 MB
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