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________________ पृष्ठ २६ सूत्र पंक्ति अशुद्ध शुद्ध २१७ ४ १६ गौतम! वे सब नैरयिक होते हैं १. क्रोधोपयुक्त। २. अथवा क्रोधो पयुक्त एक मानोपयुक्त। ३. अथवा क्रोधोपयुक्त, मानोपयुक्त। ४. गौतम! वे सब नैरयिक होते हैं १. सभी क्रोधोपयुक्त। २. अथवा अनेक क्रोधोपयुक्त, एक मानोपयुक्त। ३. अथवा अनेक क्रोधोपयुक्त, अनेक मानोपयुक्त। ४. अथवा अनेक क्रोधोपयुक्त, एक मायोपयुक्त। ५. अथवा अनेक क्रोधोपयुक्त, अनेक मायो- पयुक्त। ६. अथवा अनेक क्रोधोपयुक्त, एक लोभोपयुक्त। ७. अथवा अनेक क्रोधोपयुक्त, अनेक लोभोपयुक्त। ८. अथवा अनेक क्रोधोपयुक्त, एक मानोपयुक्त, एक मायोपयुक्त। ६. अनेक क्रोधोपयुक्त, एक मानोपयुक्त, अनेक मायोपयुक्त। १०. अनेक क्रोधोपयुक्त, अनेक मानोपयुक्त, एक मायोपयुक्त। ११. अनेक क्रोधोपयुक्त, अनेक मानोपयुक्त, अनेक मायोपयुक्त। १२. अनेक क्रोधोपयुक्त एक मानोपयुक्त, एक लोभोपयुक्त। १३. अनेक क्रोधोपयुक्त, एक मानोपयुक्त, अनेक लोभोपयुक्त। १४. अनेक क्रो गोपयुक्त, अनेक मानोपयुक्त, एक लोभोपयुक्त। १५. अनेक क्रोधोपयुक्त, अनेक मानोपयुक्त, अनेक लोभोपयुक्त। १६. अनेक क्रोधोपयुक्त, एक मायोपयुक्त, एक लोभोपयुक्त। १७. अनेक क्रोधोपयुक्त, एक मायोपयुक्त, अनेक लोभोपयुक्त। १८. अनेक क्रोधोपयुक्त, अनेक मायोपयुक्त, एक लोभोपयुक्त। १६. अनेक क्रोधोपयुक्त, अनेक मायोपयुक्त, अनेक लोभोपयुक्त। २०. अनेक क्रोधोपयुक्त, एक मानोपयुक्त, एक मायोपयुक्त, एक लोभोपयुक्ता २१. अनेक क्रोधोपयुक्त, एक मानोपयुक्त, एक मायोपयुक्त, अनेक लोभोपयुक्त। २२. अनेक क्रोधोपयुक्त, एक मानोपयुक्त, अनेक मायोपयुक्त, एक लोभोपयुक्त। २३. अनेक क्रोट गोपयुक्त, एक मानोपयुक्त, अनेक मायोपयुक्त, अनेक लोभोपयुक्त। २४. अनेक क्रोधोपयुक्त, अनेक मानोपयुक्त, एक मायोपयुक्त, एक लोभोपयुक्त। २५. अनेक क्रोधोपयुक्त, अनेक मानोपयुक्त, एक मायोपयुक्त, अनेक लोमोपयुक्त। २६. अनेक क्रोधोपयुक्त, अनेक मानोपयुक्त, अनेक मायोपयुक्त, एक लोभोपयुक्त। २७. अनेक क्रोधोपयुक्त, अनेक मानोपयुक्त, अनेक मायोपयुक्त, अनेक लोभोपयुक्त। शुद्ध पृष्ठ ३० ३१ ४१, ४२, ४३ ८२ ६१६३ ६३ ६८ १४२ १४३ १४६ अथवा क्रोधोपयुक्त, एक मायोपयुक्त। ५. अथवा क्रोधोपयुक्त, मानोपयुक्त। ६. अथवा क्रोधोपयुक्त, एक लोभोपयुक्त। ७. अथवा क्रोधोपयुक्त, लोभोपयुक्त ८ अथवा क्रोधोपयुक्त, एक मानोपयुक्त, एक मायोपयुक्त। ६. क्रोधोपयुक्त, एक मानोपयुक्त, मायोपयुक्त। १०. क्रोधोपयुक्त, मानोपयुक्त, एक मायोपयुक्त। ११. क्रोधोपयुक्त, मानोपयुक्त, मायोपयुक्त। १२. क्रोधोपयुक्त एक मानोपयुक्त, एक लोभोपयुक्त। १३. क्रोधोपयुक्त, एक मानोपयुक्त, लोभोपयुक्त। १४. क्रोधोपयुक्त, मानोपयुक्त, लोभोपयुक्त। १५. क्रोधोपयुक्त, मानोपयुक्त, लोभोपयुक्त। १६. क्रोधोपयुक्त, एक मायोपयुक्त, एक लोभोपयुक्त। १७. क्रोधोपयुक्त, एक मायोपयुक्त, लोभोपयुक्त १८. क्रोधोपयुक्त, मायोपयुक्त, एक लोभोपयुक्त। १६. क्रोधोप- युक्त, मायोपयुक्त, लोभोपयुक्त। २०. क्रोधोपयुक्त, एक मानोपयुक्त, एक मायोपयुक्त, एक लोभोपयुक्त। २१. क्रोधापयुक्त, एक मानो- पयुक्त, एक मायोपयुक्त, लोभोपयुक्त। २२. क्रोधोपयुक्त, एक मानोपयुक्त, मायोपयुक्त, एक लोभोपयुक्त। २३. क्रोधोपयुक्त, एक मनोपयुक्त, मायोपयुक्त, लोभोपयुक्ता २४. क्रोधोपयुक्त, मानोपयुक्त, एक मायोपयुक्त, एक लोभोपयुक्त। २५. क्रोधोपयुक्त, मानोपयुक्त, एक मायोपयुक्त, लोभोपयुक्त। २६. क्रोधोपयुक्त, मानोपयुक्त, मायोपयुक्त, एक लोभोपयुक्त। २७. क्रोधोपयुक्त, मानोपयुक्त, मायोपयुक्त, लोभोपयुक्त १७३ सूत्र २१६, २२१, २२४ २२७, २२, २३१, २३५, २३८ २२८, २३०, २३४, २३७, २४१ ३२३, ३२५, ३२७, ३२६, ३३१, ३३३, ३३६ ८० १२५-१२६ १२६ स. गा. २५६ २६१ सं. गा. १४२ १४४ पंक्ति ३ १ २-३ 9 १, २ ४-७ ३ १-२ १. १२ उनके - पृथ्वी यावत् वैमानिक तक ज्ञातव्य है। शतक १ अशुद्ध शतक २ यावत् जीव एक साथ स्त्री-वेद और पुरुष वेद दोनों का वेदन करते हैं। में कितने वर्ण हैं? कितने गन्ध है? कितने रस हैं? कितने स्पर्श हैं? गौतम! उसमें पांच वर्ण, पांच रस, दो गन्ध और आठ स्पर्श हैं। शतक ३ चमर की कैसी विक्रिया, चमर का उत्पात, क्रिया, यान, स्त्री, नगर, लोक-पाल, अधिपति, इन्द्रिय और परिषद्-तीसरे शतक में ये दश उद्देशक हैं। महाविमान है। वह साढा - बारह लाख योजन की लम्बाई-चौड़ाई वाला है-सोम के विमान तक जैसा वर्णन है, वैसा ही वर्णन अभिषेक तक ज्ञातव्य है (सू. २५०) राजधानी का वर्णन भी प्रासाद पंक्ति तक सोम की राजधानी की भांति ज्ञातव्य है। महाविमान के पश्चिम भाग में स्वयंजल नाम का महाविमान है। इसके विमान, राजधानी और प्रासादावतंसक तक का वर्णन सोम की भाँति ज्ञातव्य है। केवल नामों को भिन्नता है। शतक ५ हैं- चम्पानगरी में सूर्य, वायु, ग्रन्थिक, शब्द उदमस्थ, आयु, एजन, निर्व्रन्थ, राजगृह और चम्पानगरी में चन्द्रमा क्रीत कृत का परिभोग यावत् राज- पिण्ड का परिभोग पूर्व सूत्र (१४०) की भाँति क्रीत कृत का परस्पर अनुप्रदान यावत् राजपिण्ड का परस्पर अनुप्रदान पूर्व सूत्र (१४३) की भांति (उनके) - पृथ्वी में (भ. १/२१७) यावत् (म. १/२१६) यावत् वैमानिक (ज्ञातव्य है )। (भ. २ / ७६) यावत् ( एक जीव भी एक समय में दो वेदों का वेदन करता है, जैसे- ) स्त्री-वेद का और पुरुष - वेद का। कितने वर्ण वाला है? कितनी गन्ध वाला है? कितने रस वाला है? कितने स्पर्श वाला है? गौतम! वह पांच वर्ण वाला, पांच रस वाला, दो गन्ध वाला और आठ स्पर्श वाला है। १. चमर की कैसी विक्रिया, २ चमर का उत्पात, ३. क्रिया, ४. यान, ५. स्त्री, ६. नगर, ७. लोकपाल, ८. अधिपति, ६. इन्द्रिय और १० परिषद्-तीसरे शतक में ये दश उद्देशक हैं ।। १।। महाविमान प्रज्ञप्त है - ( वह) साढा - बारह लाख योजन ( की लम्बाई चौडाई वाला) है-जैसा सोम का विमान (उक्त है), वैसा (भ. ३ / २५०) यावत् अभिषेक ( वक्तव्य है)। ( राजधानी का वर्णन भी) उसी प्रकार (म. ३ / २५१) यावत् प्रासाद-पंक्तियां (वक्तव्य हैं)। महाविमान के पश्चिम भाग में ( शतंजल नाम का महाविमान) है। जैसा सोम के ( विषय में उक्त है), वैसा ( वरुण के) विमान और राजधानी (के विषय में) वक्तव्य है (म. ३/२५०, २५१) यावत् प्रासादावतंसक (वक्तव्य हैं), इतना अन्तर है-नामों की भिन्नता है। हैं-- १. चम्पानगरी में सूर्य, २. वायु, ३. ग्रन्थिक, ४. शब्द, ५. छदमस्थ, ६. आयु, ७. एजन, ८. निर्ग्रन्थ ६. राजगृह और १०. चम्पानगरी में चन्द्रमा || १|| यह ( क्रीत कृत का परिभोग) भी पूर्ववत् (भ. ५/ १४० की भांति ) यावत् राज- पिण्ड ( का परिभोग ) यह ( क्रीत-कृत का परस्पर अनुप्रदान) भी पूर्ववत् (म. ५/१४३ की भांति) यावत् राज-पिण्ड (का परस्पर अनुप्रदान)
SR No.032416
Book TitleBhagwati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages546
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size14 MB
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