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________________ श. ११ : उ. ९ : सू. ६४-७१ भगवती सूत्र और कावड़ को रखा। रख कर वेदी का प्रमार्जन किया, प्रमार्जन कर उपलेपन और सम्मार्जन किया। सम्मार्जन कर हाथ में दर्भ कलश लेकर जहां गंगा नदी थी, वहां गया। वहां जाकर महानदी गंगा में अवगाहन किया। अवगाहन कर जल में मज्जन किया, देह-शुद्धि की। देह-शुद्धि कर जल-क्रीड़ा की, जल-क्रीड़ा कर जलाभिषेक किया, जलाभिषेक कर, जल का स्पर्श कर वह स्वच्छ और परम शुचीभूत (साफ-सुथरा) हो गया। देव-पितरों का कृतकार्य जलांजलि अर्पित कर, दर्भ-कलश हाथ में लेकर महानदी गंगा से नीचे उतरा, उतरकर जहां अपना उटज था वहां आया, वहां आकर दर्भ, कुश और बालुका से वेदी की रचना की, रचनाकर शरकण्डों से अरणि का मंथन किया, मंथन कर अग्नि को उत्पन्न किया, उत्पन्न कर अग्नि को सुलगाया, सुलगा कर उसमें समिधा-काष्ठ डाला, डाल कर अग्नि को प्रदीप्त किया, प्रदीप्त कर अग्नि के दक्षिण पार्श्व में सात अंगों को स्थापित किया, जैसेअस्थि, वल्कल, ज्योति-स्थान, शय्या, भाण्ड, कमण्डलु, दण्ड-दारु और स्व-शरीर । मधु, घृत और चावल का अग्नि में हवन किया, हवन कर चरु–बलि-पात्र में बलि-योग्य द्रव्य को पकाया, पका कर वैश्रमण देव की पूजा की, अतिथियों-आगन्तुकों का पूजन किया। पूजन करने के पश्चात् स्वयं आहार किया। ६५. वह शिव राजर्षि दूसरे बेले का तप स्वीकार कर विहार करने लगा। ६६. वह शिवराजर्षि दूसरे बेले के पारणे में आतापन-भूमि से नीचे उतरा, उतरकर वल्कल -वस्त्र पहनकर जहां अपना उटज था, वहां आया। वहां आकर वंशमय पात्र और कावड़ को ग्रहण किया. ग्रहण कर दक्षिण दिशा में जल को छिडका। जल छिडककर कहा-दक्षिण दिशा के लोकपाल महाराज यम प्रस्थान के लिए प्रस्थित शिवराजर्षि की अभिरक्षा करें, शेष पूर्ववत् यावत् पूजन करने के पश्चात् स्वयं आहार किया। ६७. वह शिव राजर्षि तीसरे बेले का तप स्वीकार कर विहार करने लगा। ६८. वह शिव राजर्षि तीसरे बेले के पारणे में आतापन-भूमि से नीचे उतरा, उतरकर वल्कल वस्त्र पहनकर जहां अपना उटज था, वहां आया, वहां आकर वंशमय पात्र और कावड़ को ग्रहण किया, ग्रहण कर पश्चिम दिशा में जल को छिड़का, जल छिड़क कर कहा–पश्चिम दिशा के लोकपाल महाराज वरुण प्रस्थान के लिए प्रस्थित शिवराजर्षि की अभिरक्षा करें, शेष पूर्ववत् यावत् पूजन करने के पश्चात् स्वयं आहार किया। ६६. वह शिव राजर्षि चतुर्थ बेले का तप स्वीकार कर विहार करने लगा। ७०. वह शिव राजर्षि चतुर्थ बेले के पारणे में आतापन-भूमि से नीचे उतरा, उतरकर वल्कल वस्त्र पहनकर जहां अपना उटज था वहां आया, वहां आकर वंशमय पात्र और कावड़ को ग्रहण किया, ग्रहण कर उत्तर दिशा में जल को छिडका, जल छिड़क कर कहा-उत्तर दिशा के लोकपाल महाराज वैश्रमण प्रस्थान के लिए प्रस्थित शिव राजर्षि की अभिरक्षा करें शेष पूर्ववत् यावत् पूजन करने के पश्चात् स्वयं आहार किया। ७१. निरन्तर बेले-बेले (दो-दो दिन का उपवास) से दिशा-चक्रवाल तप के द्वारा आतापन-भूमि में दोनों भुजाएं ऊपर उठाकर सूर्य के सामने आतापना लेते हुए प्रकृति की भद्रता, ४१२
SR No.032416
Book TitleBhagwati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages546
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size14 MB
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