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________________ (XLVI) सार्वभौम धर्म का प्रवचन', गतिप्रवाद अध्ययन की प्रज्ञापना, कृष्णराजि२, तमस्काय', परमाणु की गति', दूरसंचार आदि अनेक महत्त्वपूर्ण प्रकरण हैं। उनका वैज्ञानिक दृष्टि से अध्ययन अपेक्षित है।" (३) प्रस्तुत आगम का परिमाण और विभाग "समवायांग और नंदीसूत्र के अनुसार प्रस्तुत आगम के सौ से अधिक अध्ययन, दस हजार उद्देशक और दस हजार समुद्देशक हैं। इसका वर्तमान आकार उक्त विवरण से भिन्न है। वर्तमान में इसके एक सौ अड़तीस शत या शतक और उन्नीस सौ पच्चीस उद्देशक मिलते हैं। प्रथम बत्तीस शतक स्वतंत्र हैं। तेतीस से उनचालीस तक के सात शतक बारह-बारह शतकों के समवाय हैं। चालीसवां शतक इक्कीस शतकों का समवाय है। इकतालीसवां शतक स्वतंत्र है। कुल मिलाकर एक सौ अड़तीस शतक होते हैं। उनमें इकतालीस मुख्य हैं और शेष अवान्तर शतक हैं।" कुल मिला कर १३८ शतक के १९२३ उद्देशक तथा अक्षर-परिमाण ६१७२१४ हैं। किन्तु ग्रन्थ का समग्र ग्रन्थाग्र-कुल गाथा १९३१९ अक्षर १६ तथा अक्षर-परिमाण ६१८२२४ बताया गया है। ___ ग्रन्थ-परिमाण में जो भिन्नता है, उसका स्पष्टीकरण इस प्रकार है-“वर्तमान में प्रस्तुत आगम की मुख्य दो वाचनाएं मिलती हैं संक्षिप्त और विस्तृत । संक्षिप्त वाचना का ग्रन्थपरिमाण १५७५१ अनुष्टुप् श्लोक माना जाता है। विस्तृत वाचना का ग्रन्थ-परिमाण सवा लाख अनुष्टुप् श्लोक माना जाता है। अभयदेवसूरि ने संक्षिप्त वाचना को ही आधार मानकर प्रस्तुत आगम की वृत्ति लिखी है। हमने इस पाठ-संपादन में 'जाव' आदि पदों द्वारा समर्पित पाठों की यथावश्यक पूर्ति की है। उससे इसका ग्रन्थ-परिमाण १९३१९ अनुष्टुप श्लोक, १६ अक्षर अधिक हो गया है।"१२ प्रस्तुत आगम के अध्ययन को शत (शतक) कहा गया है। शत और अध्ययन पर्यायवाची हैं।१३ १. वही, ९/९-३३। एक उद्देशक है, दूसरी परम्परा में ये तीन २. वही, ८/२९२-२९३ । उद्देशक हैं। इस परम्परा के अनुसार प्रस्तुत ३. वही, ६/८९-११८ । आगम के कुल उद्देशक १९२५ हैं। ४. वही, ६/७०-८८। १०. भगवई (भाष्य), खण्ड १, भूमिका, पृ. ५. वही, १६/११६। २१। वही, ५/१०३। ११. अंगसुत्ताणि, भाग २, पृ. १०४६ । ७. भगवई (भाष्य), खण्ड १, भूमिका, पृ. २१। १२. अंगसुत्ताणि, भाग २, सम्पादकीय, पृ. ८. वही, खण्ड १, भूमिका, पृ. २१।। १६। बीसवें शतक के छठे उद्देशक में पृथ्वी, १३. भगवई (भाष्य), खण्ड १, भूमिका, पृ. अप और वायु इन तीनों की उत्पत्ति का २२॥ निरूपण है। एक परम्परा के अनुसार यह
SR No.032416
Book TitleBhagwati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages546
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size14 MB
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