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________________ श. १० : उ. ३,४ : सू. ३८-४७ भगवती सूत्र करने में समर्थ है। इसी प्रकार यावत् पहले व्यतिक्रमण कर पश्चात् विमोहित करती है। ये चार दण्डक वक्तव्य हैं। अश्व का 'खु-खु' करण-पद ३९. भंते! दौड़ते हुए अश्व के क्या 'खु-खु' यह शब्द होता है? गौतम! दौड़ते हुए अश्व के हृदय और यकृत के बीच कर्कटक वायु समुत्पन्न होती है, इस कारण दौड़ते हुए अश्व के 'खु-खु'-शब्द होता है। प्रज्ञापनी भाषा-पद ४०. भंते! मैं ठहरूंगा, सोऊंगा, खड़ा रहूंगा, बैलूंगा, लेढुंगा-क्या यह प्रज्ञापनी भाषा है? क्या यह मृषा भाषा नहीं है? हां, गौतम! ठहरूंगा, सोऊंगा, खड़ा रहूंगा, बैलूंगा, लेढुंगा-यह प्रज्ञापनी भाषा है, मृषा भाषा नहीं है। ४१. भंते ! वह ऐसा ही है। भंत ! वह ऐसा ही है। चौथा उद्देशक तावत्रिंशक-देव-पद ४२. उस काल और उस समय में वाणिज्यग्राम नामक नगर था-वर्णक। दूतिपलाशक चैत्य । वहां भगवान् महावीर आए यावत् परिषद् वापिस नगर में चली गई। ४३. उस काल और उस समय में श्रमण भगवान् महावीर के ज्येष्ठ अन्तेवासी इन्द्रभूति नामक अनगार यावत् ऊर्ध्वजानु अधःसिर (उकडू-आसन की मुद्रा में) और ध्यान-कोष्ठ में लीन होकर संयम और तप से अपने आपको भावित करते हुए रह रहे थे। ४४. उस काल और उस समय में श्रमण भगवान् महावीर का अंतेवासी श्याम-हस्ती नामक अनगार था। वह प्रकृति से भद्र और उपशांत था। उसके क्रोध, मान, माया और लोभ प्रतनु थे। वह मृदु-मार्दव-संपन्न, आलीन (संयतेंद्रिय) और विनीत था। वह श्रमण भगवान् महावीर के न अति दूर और न अति निकट ऊर्ध्वजानु अधःसिर–इस मुद्रा में और ध्यान-कोष्ठ में लीन होकर संयम और तप से अपने आपको भावित करते हुए रह रहा था। ४५. उस समय श्यामहस्ती अनगार के मन में एक श्रद्धा (इच्छा) यावत् उठने की मुद्रा में उठा, उठकर जहां श्रमण भगवान् महावीर थे, वहां आया, वहां आकर भगवान् गौतम को दायीं ओर से प्रारंभ कर तीन बार प्रदक्षिणा की यावत् पर्युपासना करते हुए इस प्रकार बोला४६. भंते! असुरकुमारराज असुरेन्द्र चमर के त्रायस्त्रिंशक-देव त्रायस्त्रिंशक-देव हैं? हां, हैं। ४७. भंते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है-असुरकुमारराज असुरेन्द्र चमर के त्रायस्त्रिंशक-देव त्रायस्त्रिंशक-देव है? ३९४
SR No.032416
Book TitleBhagwati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages546
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size14 MB
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